सिवनी। मुख्यालय से करीब 24 किमी दूर दिघौरी में स्थित श्री गुरुरत्नेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित विश्व के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग के दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। सावन में यहां विशेष अनुष्ठान के साथ कावड़िए गंगाजल से अभिषेक करने पहुंचते हैं। मान्यता है कि स्फटिक शिवलिंग के दर्शन करने से पापों से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है।
17 साल पहले हुई थी स्थापना
17 साल पहले वर्ष 2002 में गुस्र्धाम दिघोरी में एशिया के सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग की स्थापना धर्माचार्याें की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुई थी। जिस स्थान पर स्फटिक शिवलिंग की स्थापना हुई है उसी स्थान पर द्विपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद महाराज का जन्म हुआ था।
वर्ष 2002 में 15 से 22 फरवरी तक एक सप्ताह तक विशाल मेले का आयोजन स्फटिक शिवलिंग की स्थापना के अवसर पर किया गया था। इस दौरान चारों पीठों के शंकराचार्य सहित सभी धर्माें के धर्माचार्य यहां पहुंचे थे। दिघोरी के इस शिवलिंग की स्थापना जगतगुरु शंकराचार्य महाराज ने कराई थी।
दिघोरी में कश्मीर से लाए गए थे स्फटिक शिवलिंग
गुस्र्धाम दिघोरी में स्थापित स्फटिक शिवलिंग को कश्मीर से यहां लाया गया था। बर्फ की चट्टानों के बीच कई वर्षाें तक पत्थर के बीच दबे रहने के बाद ऐसा शिवलिंग निर्मित होता है। ऐसे शिवलिंग के पूजन का धर्मग्रंथों में बहुत महत्व बताया गया है। स्फटिक शिवलिंग के दर्शन और पूजन से समस्त पापों का नाश होता है। यही वजह है कि स्फटिक शिवलिंग के दर्शन और पूजन करने अन्य जिलों और प्रदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैंं।
दक्षिण शैली में बना मंदिर
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज की जन्मस्थली दिघौरी गांव में मंदिर का निर्माण दक्षिण शैली में किया गया है। मंदिर में सीढ़ी चढ़ने के बाद एक हॉल में विशाल नंदी विराजित हैं। इसके बाद एक गर्भगृह में स्फटिक शिवलिंग स्थापित है। मुख्यालय से 24 किमी दूर स्थित इस मंदिर में सिर्फ सड़क मार्ग से ही पहुंचा जा सकता है। जबलपुर मार्ग पर राहीवाड़ा से 8 किमी अंदर मंदिर स्थापित है। यहां पहुंचने के लिए कम साधन हैं। स्वयं के साधन से ही मंदिर तक पहुंचा जाता है।