भोपाल। हर साल की तरह इस साल भी मिट्टी की मूर्तियों के लिए प्रशासन का ड्रामा शुरू हो गया है। इसे ड्रामा ही कहा जाएगा, जब 75 प्रतिशत मूर्तियां पीओपी से बना दीं गईं, तब प्रशासन ने मीटिंग बुलाई। अब धमकी दे रहे हैं। प्रशिक्षण देने की बात की जा रही है। सवाल यह है कि यह सबकुछ समय रहते क्यों नहीं किया गया।
गणेशोत्सव के लिए शहर में पीओपी की करीब 6 हजार मूर्तियां बनकर तैयार हो गई हैं। मूर्तियों में रंगरोगन काम शुरू हो गया है। जब 75 प्रतिशत काम पूरा हो गया तो कलेक्टर तरुण पिथोड़े ने पीओपी की मूर्तियों की जांच शुरू करवा दी। घबराए मूर्तिकार मंगलवार को कलेक्टर तरुण पिथोड़े से मिलने कलेक्टोरेट पहुंच गए। शायद प्रशासन की कवायद भी यहीं तक थी। इसी ढर्रे पर चलते हुए प्रशासन का यह तीसरा साल है।
मीटिंग में नरम पड़ गए कलेक्टर
मूर्तिकार तुलसीराम प्रजापति ने कहा कि 75 फीसदी मूर्तियां बन चुकी हैं। उनका क्या करेंगे? इस पर कलेक्टर ने कहा कि मिट्टी की मूर्ति बनाना सीख लो। मूर्तिकार ने कहा कि भोपाल की मिट्टी खराब है, यहां की मिट्टी से छोटी मूर्ति बनाने पर चटक जाएगी। कलेक्टर ने मूर्तिकारों को समझाया कि पीओपी की मूर्ति बनाने से तालाब दूषित होता है। कलेक्टर ने मूर्तिकारों से कहा कि मिट्टी की मूर्ति बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों से कैंप लगवाएंगे। ताकि ज्यादा मूर्तिकारों को ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी।
यहां पर बन रही हैं मूर्तियां
शहर में माता मंदिर, मैनिट चौराहा, पुराने शहर, कोलार रोड इलाकों में 6 हजार से ज्यादा मूर्तियां बनकर तैयार हो चुकी हैं। भोपाल में 100 से ज्यादा मूर्तिकार पीओपी की मूर्ति बनाने के काम करते हैं। यहां से मूर्ति बनाकर बाहर भी सप्लाई की जाती हैं।
समय निकलने के बाद ट्रेनिंग की बात
कलेक्टर ने मूर्तिकारों से कहा कि मिट्टी की मूर्ति बनाने के लिए ट्रेनिंग दी जाएगी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों से कैंप लगवाएंगे। ताकि ज्यादा मूर्तिकारों को ईको फ्रेंडली मूर्ति बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। इस पर मूर्तिकारों और शांति समिति के सदस्य प्रमोद नेमा ने आपत्ति दर्ज कराते हुए पूछा- पीसीबी के अफसरों ने पिछले साल कहां और कितने लोगों को ट्रेनिंग दी, इसका कोई हिसाब नहीं है। समय पर ट्रेनिंग दी जाती तो यह दिन नहीं देखना पड़ता।
लापरवाही या साजिश
लगातार तीसरी साल पीओपी की मूर्तियां बनकर तैयार हो गईं। कहा जाता है कि यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह महज लापरवाही है या फिर कोई साजिश। पहले पीओपी की मूर्तियां बनने दीं जातीं हैं, जब माल बनकर तैयार हो जाता है तो प्रशासनिक टीम कार्रवाई के नाम पर निकल पड़ती है और उसके बाद वसूली भाई का काम शुरू हो जाता है। यह आरोप क्यों ना लगाया जाए, जबकि एक ही तरह की लापरवाही को यह तीसरा साल है।