इंदौर। उच्च न्यायालय ने देवी अहिल्या विवि को नोटिस जारी कर पूछा है कि ऐसी कौन सी तकनीकी गड़बड़ी थी जिसकी वजह से पूरी सीईटी ही निरस्त करनी पड़ी। हजारों विद्यार्थियों के भविष्य से जुड़े इस फैसले को लेने से पहले विवि ने एक बार भी छात्रों का पक्ष जानना जरूरी क्यों नहीं समझा? विवि को दो दिन में जवाब देना है। इसके बाद न्यायालय तय करेगा कि सीईटी निरस्त करने का फैसला सही था या नहीं।
उल्लेखनीय है कि देअविवि ने 27 जुलाई को सीईटी निरस्त करने का फैसला लिया था। इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर हुई है। याचिका छात्र आदित्य गिलके ने दायर की है। इसमें कहा है कि बिना छात्रों का पक्ष सुने सीईटी निरस्त करने का फैसला लिया गया है। विभिन्ना पाठ्यक्रमों के लिए साढ़े 17 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों ने सीईटी दी थी। उन्हें उम्मीद थी कि सीईटी के परिणाम के आधार पर उन्हें अच्छे कोर्स में प्रवेश मिलेगा लेकिन सीईटी का परिणाम ही घोषित नहीं किया गया। विवि ने इस परीक्षा के लिए हर छात्र से डेढ हजार रुपए फीस ली थी। सीईटी निरस्त होने से हजारों छात्रों के सामने संकट खड़ा हो गया है।
बुधवार को न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायमूर्ति शैलेंद्र शुक्ला की युगल पीठ ने याचिकाकर्ता के आरंभिक तर्क सुनने के बाद विवि को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। विवि को दो दिन में जवाब देना है। न्यायालय अब इस मामले में 2 अगस्त को सुनवाई करेगा।
यह है मामला
देअविवि ने 4 जून को विभिन्ना पाठ्यक्रमों के लिए सीईटी के लिए आवेदन बुलवाए थे। 23 जून को सीईटी भी हुई। 17 हजार 760 छात्रों ने इसमें हिस्सेदारी की थी। सीईटी का परिणाम घोषित करने के बजाय 27 जुलाई को विवि ने परीक्षा ही निरस्त कर दी। नए आदेश के अनुसार अंतिम पात्रता परीक्षा में मिले अंकों के हिसाब से छात्रों को विभिन्ना पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाएगा।