नई दिल्ली। मलेशिया की सरकार स्वयंभू धर्मोपदेशक जाकिर नाइक (Zakir Naik) को किसी भी दिन मलेशिया से बाहर का रास्ता दिखा सकती है| जाकिर नाइक के खिलाफ 115 शिकायतें लम्बित है. सभी शिकायतों के मूल में सामजिक वैमनस्यता के फैलाव का आरोप है | इन दिनों जाकि रनाइक मलेशिया में हैं और वहां वह भारी विवाद में घिर गया हैं। भारत में उस पर, उसकी संस्थाओं पर सांप्रदायिकता भड़काने से लेकर विदेशी मदद लेने जैसे कई मामले चल रहे हैं, जिनसे बचने के लिए वह दुनिया भर में घूम रहा हैं। अभी कुछ ही दिनों पहले मलेशिया ने नाइक को स्थाई निवास की इजाजत दी थी और अब वह वहां भी उन्हीं आरोपों में घिर गया हैं, जिनके लिए वह जाना जाता हैं।
पहले जाकिर नाइक ने वहां रह रहे चीनी समुदाय के खिलाफ विष वमन करते हुए कहा था कि चीनी समुदाय के लोगों को मलेशिया छोड़कर चले जाना चाहिए, क्योंकि वे इस देश के नागरिक नहीं, बल्कि मेहमान हैं।पिछले दिनों उन्होंने उन हिंदुओं के खिलाफ बयान दे डाला, जो सदियों से मलेशिया के नागरिक हैं और वहां की स्थानीय संस्कृति व राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा भी। जाकिर नाइक ने कहा कि मलेशिया के हिंदुओं की मलेशियाई प्रधानमंत्री के मुकाबले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में ज्यादा आस्था है। इन दोनों ही बयानों के बाद मलेशिया की राजनीति में तूफान आ गया है। चीनी और हिंदू, दोनों समुदायों के लोगों और नेताओं ने जाकिर नाइक का विरोध शुरू कर दिया है।
मामले सिर्फ ये दो ही नहीं हैं। सरकार को जाकिर नाइक के खिलाफ अब तक 115 शिकायतें मिल चुकी हैं। इन तमाम शिकायतों का नतीजा यह हुआ है कि मलेशिया सरकार ने अब बयान देकर कहा है कि जाकिर नाइक से पूछताछ की जाएगी, साथ ही उसे दी गई स्थाई निवास की सुविधा वापस लेकर उसे देश छोड़ने के लिए भी कहा जा सकता है। जाकिर नाइक को हाल ही में धर्मांतरण कराकर मुस्लिम बने लोगों के एक सम्मेलन में भाग लेना था, मगर उन्हें इस सम्मेलन में भाग लेने से रोक दिया गया। इस खबर से यह चर्चा भी शुरू हो गई है कि जाकिर नाइक सिर्फ उपदेशक ही नहीं, मलेशिया में चलाए जा रहे धर्मांतरण अभियान का भी हिस्सा हैं।
महत्वपूर्ण कारोबारी केंद्रों में मलेशिया की गिनती उन देशों में होती है, जो अपने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए जाने जाते हैं। वहां की 60 प्रतिशत आबादी मलेशियाई मूल के लोगों की हैं, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम धर्मावलंबी हैं। बाकी आबादी भारतीय और चीनी मूल के लोगों की है। पिछले कुछ समय में राजनीतिक अस्थिरता के चलते वहां कट्टरपंथियों ने पांव जमाने शुरू कर दिए हैं। माना जा रहा है कि जाकिर नाइक उन्हीं के अभियान का हिस्सा हैं। अब जब जाकिर नाइक को देश से बाहर भेजे जाने की चर्चाएं शुरू हुई हैं, तो यही कट्टरपंथी उनके बचाव में खडे़ हो रहे हैं।
जाकिर नाइक का यह मामला साबित करता है कि जो दुनिया के किसी एक देश के लिए खतरनाक है, वह पूरी दुनिया के लगभग सभी देशों के लिए भी उतना ही खतरनाक है। एक दूसरा सच यह भी है कि दुनिया अभी तक इस तरह के खतरों से निपटने के रास्ते तलाश नहीं सकी है। और यह भी कि दुनिया के कुछ देश तो उसे शायद खतरा मानने के लिए तैयार भी न हों। आतंकवादियों के खिलाफ तो फिर भी एक तरह की आम सहमति दुनिया में दिख रही है, पर उन लोगों के खिलाफ कुछ नहीं हो रहा, जो समाज में वैमनस्य फैलाने के लिए जाने जाते हैं।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।