नई दिल्ली। वर्षा काल हमेशा चिन्तन का काल रहा है| इस काल में वन पर्यावरण चिन्तन और पर्यावरण सुधार पर चिन्तन होता है | वन संसाधन पर्यावरण तथा मानव संस्कृति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है हमारी संस्कृति वनों के सुरम्य वातावरण में पल्लवित एवं विकसित हुई है। पारिस्थितिक तंत्र की महत्वपूर्ण इकाई के साथ वन जीव जंतुओं को संरक्षण प्रदान करते हैं मानव की अर्थव्यवस्था में इसके योगदान को तिरस्कृत नहीं किया जा सकता है।
जलवायु पर नियंत्रण मृदा अपरदन पर अवरोध स्वच्छ वातावरण आदि वनों द्वारा प्राप्त होता है। मनुष्य वर्तमान समय में इसकी उपादेयता को भूल गया है अनियमित कटाई द्वारा वनोन्मूलन हो रहा है। विश्व स्तर पर वन क्षेत्र में निरंतर कमी हो रही है इनमें रहने वाले नाना प्रकार के जीव जंतु या तो स्थानांतरित हो रहे हैं या मर रहे हैं जल स्तर निरंतर नीचा हो रहा है पृथ्वी के तापमान के बढ़ने से हिम क्षेत्र पिघल रहा है अत: वनों का संरक्षण नितांत आवश्यक है।
हम और आप जो ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं उसमें वर्षा वनों का अहम योगदान है। इसके अतिरिक्त विश्व की सबसे ज्यादा जैव विविधता इन वर्षा वनों में ही पाई जाती है। वनों से हमें एक चौथाई ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है। वायुमंडल की ऑक्सीजन का पचास प्रतिशत हिस्सा हमें महासागरों में पाए जाने वाले फाइटोप्लैंक्टन से प्राप्त होता है इसलिए हमें वर्षा वनों के साथ-साथ सागरों में पाए जाने वाले फाइटोप्लैंक्टन को संरक्षित रखने की आवश्यकता है ।
विशाल वर्षा वन में अमेजन का नाम है |अर्थव्यवस्था की मंदी से जूझ रहे ब्राजील को नए प्रधानमंत्री ने वर्षा वनों से संबंधित पर्यावरण के नियमों को शिथिल कर दिया जिससे औद्योगिक घरानों के साथ-साथ वहां के स्थानीय लोगों ने भी अमेजन वर्षा वनों का दोहन प्रारंभ कर दिया। मानव हस्तक्षेप के बढ़ते दबाव के कारण अमेजन वर्षा वनों में आग की बारंबारता बढ़ गई। ब्राजील सरकार ने उन सभी संस्थाओं और एनजीओ को भी बैन किया जो पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रहे थे और सरकार द्वारा नीतियों को शिथिल बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। यहां तक कि कुछ प्रमुख संस्थाओं के लोगों को पदों से भी हटा दिया गया। इन सबके अतिरिक्त ब्राजील सरकार ने पर्यावरण संरक्षण पर बजट को भी कम किया।
आग पर काबू पाने की बात यदि करें तो इस पर सरकार लगातार प्रयास कर रही हैं लेकिन यह आग वर्तमान समय में बड़े पैमाने पर फैल चुकी है जिससे आग पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है। इस भीषण आग के कारण पर्यावरण एवं जीव-जंतुओं की कितनी क्षति हुई है यह तो आधिकारिक रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा।
जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र तथा अन्य जिम्मेदार देश संपूर्ण विश्व में फैले वर्षा वनों के संरक्षण के लिए एक साथ आवाज उठाएं क्योंकि उनको संरक्षित रखना मात्र उन्हीं देशों की जिम्मेदारी नहीं है जहां यह फैले हुए हैं। जिससे कानकुन सम्मेलन में 2020 तक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक क्रांति के पहले के स्तर से अधिकतम 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे लाने की जो प्रतिबद्धता दिखाई गई है वह मात्र कागजों में सिमट कर न रह जाए। इसके अतिरिक्त वन निवेश कार्यक्रम और वन कार्बन भागीदारी सुविधा को अधिक प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता है। जिन देशों में वर्षा वनों का फैलाव है उनको अतिरिक्त वित्तीय सहायता भी दिए जाने की जरूरत है। जिससे देश वर्षा वनों के संरक्षण के लिए सकारात्मक कदम उठाएं और वनों के दोहन को प्रतिबंधित करें यह सहायता वन क्षेत्रफल के हिसाब से वार्षिक दी जा सकती है।
21 वीं सदी में सोशल मीडिया बहुत ही प्रभावशाली साबित हो रहा है आप सोशल मीडिया के माध्यम से आवाज उठाकर आर्थिक लाभ के लिए पर्यावरण पर चोट करने वाले देशों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का एहसास सकते हैं। दुख की बात यह है कि विश्व मीडिया भी उन्हीं घटनाक्रमों को प्रकाशित और प्रसारित करता है जिनसे आर्थिक लाभ कमाया जा सके यदि हम पर्यावरण संरक्षण के लिए अभी भी गंभीर नहीं हुए तो आने वाली स्थिति भयावह होगी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।