जनस्वास्थ्य के हित में पहला सराहनीय कदम | EDITORIAL by Rakesh Dubey

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नई दिल्ली। सरकार ने एक तरफ नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बिल को संसद के दोनों सदनों से पारित करा दिया है, दूसरी तरफ इसके खिलाफ डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन भी लगातार बढ़ता जा रहा है। भारी विरोध के बीच दो दिन पहले राज्य सभा में यह बिल पास हुआ जबकि लोकसभा में यह 29 जुलाई को ही पास हो गया था। चूँकि राज्य सभा में एक संशोधन पारित होने के कारण इसे लोकसभा में फिर से पारित कराना पड़ेगा | आसानी से होगा, सरकार को इसमें कोई दिक्कत नहीं होगी।इस बिल के समाज पर क्या प्रभाव होंगे, यह समय बतायेगा | अभी सरकारी नौकरी में लगे डाक्टर मस्त हैं, निजी दवाखाने और डाक्टर व्यस्त है | जनता त्रस्त है| इतना भर इस बिल से होता हुआ दिख रहा है कि देश में भ्रष्टाचार का कीर्तिमान बनाने वाली मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) का किस्सा खत्म हो जायेगा और उसकी जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) नामक अधिष्ठान खड़ा हो जायेगा |

अभी तक एमसीआई के पास मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन, मेडिकल शिक्षा और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन जैसे काम होते थे, जो अब एनएमसी के पास चले जाएंगे। कहने को इस बिल में मेडिकल शिक्षा को बेहतर बनाने और मौजूदा स्वास्थ्य तंत्र को सक्षम बनाने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर पर डॉक्टरों को आपत्ति है। जैसे बिल के 32 वें प्रावधान के तहत कम्यूनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स को मरीजों को दवाइयां लिखने और उनका इलाज करने का लाइसेंस मिलेगा। इस पर डॉक्टरों की आपत्ति है कि इससे मरीजों की जान खतरे में पड़ जाएगी, कोई भी डाक्टर यह बताने को तैयार नहीं है कि गाँव में रहने वालों का इलाज कैसे होगा | शहरों में पले-बढ़े डाक्टर माँ-बाप की सन्तान डाक्टर गाँव में क्यों नहीं जाना चाहती । जब वो वहां जाना नहीं चाहती तो उसे किसी के दवा लिखने पर आपत्ति क्यों है ? मरीजों की जान की परवाह के बहाने हाथ से जाता मोटा कमीशन और विदेश यात्रा जैसी कई सुविधाएँ हाथ से जाती दिख रही है |

बिल में एक प्रावधान यह भी है कि आयुर्वेद-होम्योपैथी डॉक्टर ब्रिज कोर्स करके एलोपैथिक इलाज कर पाएंगे। डॉक्टरों का कहना है कि इससे नीम-हकीमी को बढ़ावा मिलेगा, इसमें में स्वार्थ है | शहरों के अधिकाशं नर्सिंग होम और अस्पताल में जूनियर डाक्टर आयुर्वेद और होम्योपैथी की डिग्रीधारी ही मिलते है वे ही मरीज को देखते हैं | नर्सिंग होम में काम लेते समय वे नीम हकीम नहीं होते अब दवा लिखने का अधिकार देते ही नीम हकीम कैसे हो जायेंगे ?एक बड़ा प्रश्न है जिसका कोई जवाब नहीं है | 

बिल का अगले प्रावधान में प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को अपनी कुल सीटों में से 540 प्रतिशत की फीस तय करने का हक मिलेगा, जिस पर डॉक्टरों की राय है कि इससे प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार बढ़ेगा। अभी भी ये भ्रष्टाचार का बड़ा अवसर है | प्रवेश इतना महंगा है की सिर्फ काला धन ही प्रवेश दिला सकता है | सरकार को सारी सीटें अपने नियन्त्रण में रख कर प्रवेश देना चाहिए | सबसे बड़ा बदलाव और प्रशंसनीय बात एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने आखिरी इम्तहान के रूप में डॉक्टरों को एग्जिट टेस्ट पास करना है |इससे कौशल का पता लग जायेगा कौन कितने पानी में है | इसके बाद ही वे प्रैक्टिस करने के हकदार होंगे और पोस्ट ग्रैजुएशन में उन्हें प्रवेश भी इसी के आधार पर दिया जाएगा। अभी तक जो ढर्रा चल रहा था उससे देश को बहुत नुकसान हुआ है | सरकार को यह समझना चाहिए स्वस्थ मानव शक्ति राष्ट्र के विकास रथ को आगे ले जाएगी | चिकित्सा सेवा बने दुकान और भ्रष्टाचार का अड्डा नही, इसके लिए कानून को और कड़ा बनाना होगा, बनाये |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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