भोपाल। सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) की प्रांतीय पदाधिकारियों की बैठक हुई और सरकार द्वारा मान न्यायालयों के निर्णयों के बावजूद "पदोन्नतियों" को बाधित रखने पर चर्चा हुई। सपाक़्स संस्था पदाधिकरी लगातार विभिन्न मंत्रीगणों और विपक्ष के नेताओं से इस विषय में मिलकर वास्तविकताओं से अवगत करा रहे हैं।
संस्था नई सरकार के गठन के बाद से ही मान मुख्यमंत्री जी से मिलने के लिए समय मांग रही है लेकिन खेदजनक है कि जहां मान मुख्यमंत्रीजी विभिन्न कर्मचारी संगठनों से मिल रहे हैं वहीं सपाक़्स से मिलने के लिए अभी तक समय नहीं निकाल पा रहे हैं। दिनांक 6.08.2019 को संस्था के सदस्यों को आश्वस्त किया गया था कि वे एक सप्ताह में समय देकर निश्चित रूप से मिलेंगे लेकिन अभी तक न तो मान मुख्यमंत्रीजी न ही मुख्य सचिव महोदय ने ही संस्था को अपनी बात रखने का कोई समय दिया।
वहीं दूसरी ओर मान मुख्यमंत्री, अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के संगठन के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर जा रहे हैं। यह पूर्व सरकार की ही भांति वर्तमान सरकार की भी घोर तुष्टीकरण, पक्षपात तथा अन्याय की नीति का परिचायक है। संगठन इसका विरोध करता है तथा यह भी स्पष्ट करता है कि हम किसी भी पक्षपात/ तुष्टिकरण का उसी प्रकार से विरोध करेंगे जिस तरह पूर्व सरकार का विरोध किया गया था।
संगठन का स्पष्ट मत है कि पदोन्नति में आरक्षण, प्रतिनिधित्व के नाम पर अन्याय पूर्ण व्यवस्था है। प्रदेश में अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के अधिकारी कर्मचारी उनके लिए निर्धारित अनुपात के मान से अब सभी स्तरों पर 200 से 300 प्रतिशत अधिक हो चुके हैं अतः पदोन्नति में आरक्षण प्रदेश में कोई आवश्यकता नहीं है न ही यह संवैधानिक रूप से किसी सरकार की बाध्यता है।
अनुसूचित जाति/ जनजाति का विभिन्न स्तरों पर पर्याप्त से अधिक प्रतिनिधित्व हो चुका है उसके बावजूद सरकार भ्रमित है और मात्र बैकलॉग की भर्तियां अबाध रूप से की जा रहीं हैं जबकि सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के भी लगभग 1.5 लाख पद खाली हैं लेकिन इनके लिए प्रतिवर्ष 5% की सीमा निर्धारित है। बैकलॉग की गणना सही नहीं है। अनुसूचित जाति/ जनजाति वर्ग के अधिकारी अनारक्षित वर्ग के रोस्टर बिंदुओं पर पदोन्नत किए जा रहे हैं और इनकी पदोन्नति से रिक्त होने वाले पद बैकलॉग में डालकर सामान्य एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ अन्याय किया जा रहा है।
सरकार द्वारा पदोन्नति हेतु नए नियम बनाने की कार्यवाही की जा रही है अर्थात सरकार स्वयं यह मान रही है कि पुराने नियम गलत थे! यदि पुराने नियम गलत थे तो सरकार माननीय उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन क्यों नहीं कर रही है? माननीय उच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 2016 में मध्य प्रदेश पदोन्नति नियम 2002 को असंवैधानिक करार दिया जा चुका है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा मान सुप्रीम कोर्ट के यथास्थिति के अंतरिम निर्णय की गलत व्याख्या करते हुए पूरे प्रदेश के कर्मचारियों की पदोन्नति में रोक दी गई है जबकि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यथास्थिति के निर्णय की व्याख्या श्री धीरेन चतुर्वेदी विरुद्ध मप्र शासन प्रकरण में की जा चुकी है एवं स्पष्ट किया जा चुका है कि सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंखयक वर्ग की पदोन्नतियां रोकना असंवैधानिक है।
संगठन पुन: अपेक्षा करता है कि मान मुख्यमंत्रीजी शीघ्र मिलने हेतु समय निकालें एवं किसी भी निर्णय के पूर्व तथ्यों/ वास्तविकताओं का आकलन स्वयं करें। यदि सरकार द्वारा पदोन्नति के संबंध में किसी भी प्रकार के दबाव में कोई अन्यायपूर्ण कार्यवाही की जाती है तो संस्था पूर्व की तरह फिर प्रदेश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू करेगी।