भोपाल। सुप्रीम कोर्ट में भले ही सरकारी कर्मचारी के पदोन्नति में आरक्षण का मामला लंबित हो पर सरकार ने पदोन्नति नियम को लेकर अपनी तैयारी शुरू कर दी है। सामान्य प्रशासन विभाग ने शिवराज सरकार के वक्त बने नियम के मसौदे को विभागीय मंत्री डॉ. गोविंद सिंह को भेज दिया है।
हालांकि, अब अनुसूचित जाति-जनजाति का पिछड़ापन साबित करने की बाध्यता समाप्त कर दी गई है। इसकी वजह से तथ्यों को नए सिरे से देखना होगा, क्योंकि नए नियमों का जो मसौदा तैयार किया गया था, वह आरक्षित वर्ग की सामाजिक व आर्थिक स्थिति के साथ प्रशासन में भागीदारी के हिसाब पर आधारित था।
बताया जा रहा है कि विभाग की मंशा प्रस्तावित नियम के मसौदे को विधि विभाग को परीक्षण के लिए भेजने की है, ताकि वहां कानून के हिसाब से कार्रवाई आगे बढ़ाई जा सके। सूत्रों के मुताबिक हाईकोर्ट से लोकसेवा पदोन्नति नियम 2002 के निरस्त होने के बाद शिवराज सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मनोज गोरकेला की देखरेख में नए नियमों का मसौदा तैयार करवाया था।
मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों ने सभी वर्गों के कर्मचारी संगठनों से इसको लेकर प्रारंभिक चर्चा कर सहमति बनाने की कोशिश भी की पर कामयाबी नहीं मिली। मसौदे के अनुसार अनुसूचित जाति, जनजाति और अनारक्षित वर्ग की पदोन्न्ति के लिए अलग-अलग चैनल बनाने का प्रस्ताव था। इसमें पदोन्नति को लेकर कोई विवाद ही नहीं होता, जिस वर्ग के लिए जितने पद आरक्षित होते, वे उसी में वरिष्ठता के हिसाब से पदोन्नति पाता जाता।
आरक्षित वर्ग का मानना था कि इससे उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप अनारक्षित वर्ग में मेरिट के आधार पर जो पदोन्नति अभी मिलती है, वो मौके खत्म हो जाएंगे। इसी मुद्दे को लेकर आम राय नहीं बन पाई और मामला अभी तक अटका हुआ है। कमलनाथ सरकार आने के बाद एक बार फिर पदोन्नति को लेकर चर्चा का दौर शुरू हुआ है।
सामान्य प्रशासन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण को देखने के लिए नया प्रभारी अधिकारी नियुक्त कर दिया है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट में लंबित प्रकरण की शीघ्र सुनवाई और यथास्थिति को स्थगन में तब्दील करने का आवेदन लगाने पर सैद्धांतिक सहमति हो गई है। आवेदन का मसौदा भी स्टैंडिंग काउंसिल को भेज दिया गया है।
उधर, नियमों का मसौदा सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ. गोविंद सिंह को आगामी कार्यवाही के लिए भेज दिया गया है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि एम. नागराज के मामले में सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जो नई व्यवस्था दी है, उसके हिसाब से प्रस्तावित नियमों का परीक्षण करना होगा। कानूनी मामला होने से विधि विभाग ही इस काम को बेहतर तरीके से अंजाम दे सकता है।
पदोन्नति के बिना 15 हजार से ज्यादा सेवानिवृत्त
सूत्रों के मुताबिक अप्रैल 2016 से अब तक 15 हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नति के सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अजाक्स हो या फिर सपाक्स, सब यही चाहते हैं कि पदोन्नति के रास्ते खुल जाएं, क्योंकि बिना पदोन्न्ति सेवानिवृत्त होने से पेंशन में आर्थिक नुकसान हो रहा है। उपसचिव स्तर के अधिकारी, जो दो साल पहले अपर सचिव पद पर पदोन्नत हो जाते, उनका कहना है कि उन्हें 15 से 20 हजार रुपए महीने का नुकसान हो रहा है। भले ही सरकार ने दो साल सेवा की अवधि बढ़ा दी हो पर पेंशन में नुकसान तो होगा ही।