भोपाल। नौकरशाह भी मंत्रियों की योग्यता के साथ खेलते रहते हैं। सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति मामले में सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री गोविंद सिंह ने मसौदे की फाइल मंगवाई तो अधिकारियों ने केवल फाइल भेज दी, उसके अंदर मसौदा तो था ही नहीं। मंत्री ने फाइल पर भी नोट लिखा कि मसौदा सहित फाइल भेजी जाए।
सुप्रीम कार्ट मामले में एक्टिव हुई सरकार
खबर आ रही है कि सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण के लिए तैनात संपर्क अधिकारी प्रमुख अभियंता आरके मेहरा को बदला जाएगा। उनकी जगह आवासीय आयुक्त कार्यालय नई दिल्ली में पदस्थ अफसर को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। उधर, सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण की जल्द सुनवाई और सशर्त पदोन्नति की अनुमति देने जल्द ही सरकार की ओर से आवेदन लगाया जाएगा। विभागीय अधिकारियों ने मंत्री की ओर से फाइल भेजे जाने की पुष्टि की है।
विभाग ने मसौदे की फाइल मंत्री के पास भेजी लेकिन मसौदा नहीं था
पदोन्नति नहीं होने को लेकर कर्मचारियों में फैले रोष को दूर करने के लिए सरकार जब तक सुप्रीम कोर्ट अंतिम फैसला नहीं सुना देता, तब तक सशर्त पदोन्नति देने की पक्षधर है। सामान्य प्रशासन विभाग ने पिछले दिनों पदोन्नति के नए नियमों के मसौदे की फाइल अनुमोदन के लिए मंत्री डॉ. गोविंद सिंह के पास भेजी थी, लेकिन इसमें मसौदा नहीं था। इस पर मंत्री ने फाइल पर ही आदेश दिए कि मसौदे को अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाए। वहीं, मामले के लिए तैनात संपर्क अधिकारी को बदला जाए। नई दिल्ली में पदस्थ किसी अफसर को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि वे लगातार इस मामले को देख सकें।
सभी पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट फैसले के अधीन रहेंगी
बताया जा रहा है कि आवासीय आयुक्त कार्यालय के अपर आवासीय आयुक्त प्रकाश उन्हाले को संपर्क अधिकारी बनाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण की जल्द सुनवाई को लेकर भी प्रदेश की स्टैंडिंग काउंसिल (वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पैनल) के माध्यम से आवेदन लगाया जाएगा। इसमें प्रदेश में पदोन्नति नहीं होने की वजह से कर्मचारियों की कार्यक्षमता पर पड़ रहे प्रभाव को आधार बनाया जाएगा। साथ ही यह बात भी रखी जाएगी कि जब तक प्रकरण का अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अधीन रखते हुए सशर्त दी जाएगी।
शिवराज सरकार के समय बन गया था मसौदा
सूत्रों के मुताबिक शिवराज सरकार के वक्त पदोन्नति नियम 2017 का मसौदा सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश की स्टैंडिंग काउंसिल की देखरेख में तैयार कराया गया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एम. नागराज के मामले में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर जो दिशा-निर्देश दिए हैं, उन्हें शामिल किया गया है। प्रारूप को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दिखाया जा चुका है। पदोन्नति में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए आरक्षण को बरकरार रखने की बात कही गई है।
तीन साल से बंद है पदोन्नति
प्रदेश में पदोन्नति बीते तीन साल यानी मई 2016 से बंद है। हाईकोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति नियम 2002 के आरक्षण से जुड़े बिंदुओं को अवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए। तब से ही पदोन्नतियां रुकी हुई हैं। कर्मचारियों का दावा है कि पदोन्नति के बिना 25 हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।