खंडवा मेडिकल कॉलेज घोटाला: भ्रष्टाचार का एकदम न्यू ब्रांड तरीका | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। जब से आरटीआई लागू हुआ है, अफसरों ने घोटालों के लिए भी नियम बनाना शुरू कर दिए हैं। खंडवा मेडिकल कॉलेज भवन बनाने के लिए मुंबई की कंपनी का ठेका दिया गया था। कंपनी ने समय पर काम नहीं किया तो पेनाल्टी लगाई गई। अब नियम बदल दिए गए और कंपनी ने सरकार पर हर्जाना के लिए क्लेम ठोक दिया। मिलीभगत देखिए कि अफसरों ने कोई आपत्ति नहीं उठाई। खुशी खुशी हर्जाना अदा किया जा रहा है। 

पहले पेनाल्टी लगाई, फिर नियम बदलकर पेनाल्टी खत्म कर दी

पत्रकार योगेश पाण्डे की एक रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2015 में खंडवा मेडिकल कॉलेज बनाने का टेंडर गैनन डंकरली एंड कंपनी लिमिटेड मुंबई (जीडीसीएल) को दिया गया। इसकी कुल लागत 158 करोड़ रुपए है। कंपनी को 24 महीने के भीतर काम पूरा करके बिल्डिंग सरकार को हैंडओवर करनी थी। इसमें देरी हुई तो बारी-बारी से पीआईयू के तीन डिवीजनल इंजीनियरों ने कंपनी पर 12 करोड़ रुपए की पेनाल्टी लगाई। फिर अचानक नियम बदले गए, काम की अवधि 60 माह करके 4 करोड़ रुपए लौटा दिए गए, बाकी लौटाए जा रहे हैं। 

कंपनी ने हर्जाना क्लेम कर दिया, सरकारी खुशी-खुशी हर्जाना अदा करने वाली है

हद तो यह है कि अब कंपनी अपनी लापरवाही सरकार पर काम में हुई देरी के लिए सरकार से हर्जाना क्लेम कर रही है। सरकारी अफसर कंपनी पर मेहरबानी दिखाकर अब क्लेम की यह राशि भी लौटाने की तैयारी कर रहे हैं। 

शिवराज सिंह लोकार्पण कर चुके हैं, बिल्डिंग अब तक नहीं बनी

उधर मेडिकल कॉलेज की अधूरी बिल्डिंग के चलते मेडिकल छात्र परेशान हो रहे हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सितंबर 2018 में चुनाव से पहले बिल्डिंग का लोकार्पण भी कर दिया था लेकिन अब तक बिल्डिंग का काम पूरा नहीं हुआ है। सवाल यह है कि क्या शिवराज सिंह चौहान इस मामले में अब कुछ बोलेंगे। 

2 साल में 24 नोटिस 

मेडिकल कॉलेज बिल्डिंग का निर्माण कर रही कंपनी को फरवरी 2016 से अक्टूबर 2018 के बीच कुल 24 नोटिस दिए गए। इसमें तय समय पर काम न होने के अलावा घटिया निर्माण को लेकर भी कंपनी से जवाब मांगा गया। 

प्रोजेक्ट डायरेक्टर का मासूम जवाब

विजय सिंह वर्मा, प्रोजेक्ट डायरेक्टर, पीआईयू का कहना है कि यदि कोई काम कंपनी ने समय पर पूरा नहीं किया है तो उसे अधुरा तो नहीं छोड़ सकते। समय बढ़ाना पड़ता है। काम पूरा होने के बाद गुण-दोषों के आधार पर फिर पेनाल्टी लगाने का निर्णय लेना पड़ता है। सवाल यह है कि यदि समय पर काम पूरा नहीं करवा सकते तो प्रोजेक्ट डायरेक्टर की क्या जरूरत। इस तरह का जवाब तो क्लर्क भी दे सकता है। 

अफसरों की कृपा से ऐसे बढ़ती रही डेडलाइन.. 

अगस्त 2015 में शुरू हुआ काम 
पहली डेडलाइन- 24 अगस्त 2017 
दूसरी डेडलाइन- 30 जून 2018 
तीसरी डेडलाइन- 31 दिसंबर 2018 
चौथी डेडलाइन- 30 अक्टूबर 2019
और अब कंपनी ने पत्र लिखकर 6 अप्रैल 2021 तक मांगी मोहलत 

अतिरिक्त परियोजना संचालक ने माना कंपनी नहीं शासन जिम्मेदार

लोकनिर्माण विभाग की परियोजना क्रियान्वयन ईकाई के अतिरिक्त परियोजना संचालक ने 24 जुलाई को कंपनी के इस दावे को स्वीकार कर लिया है कि यह देरी कंपनी की ओर से नहीं हुई बल्कि शासन की ओर से हुई। अतिरिक्त परियोजना संचालक ने प्रोजेक्ट में 891 दिनों की देरी के लिए कंपनी को जिम्मेदार न मानकर बिना पेनाल्टी बढ़ी हुई समयावधि स्वीकृत करने की सहमति दी है। संबंधित अफसर ने बाकायदा इस सहमति का पीआईयू डायरेक्टर को पत्र भी लिखा है। मजेदार बात यह है कि देरी के जिम्मेदार किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। 

विभाग ने प्रोजेक्ट बदला इसलिए देरी हुई: कंपनी

पी भादुड़ी, प्रोजेक्ट मैनेजर, गैनन डंकरले कंपनी का कहना है कि दो साल का टाइम दिया गया था लेकिन विभाग की ओर से ही देरी हुई। कैंटीन शिफ्ट किया, डिजाइन बदला गया, इसलिए देरी हुई। इसमें शासन की गलती है, कंपनी की नहीं। 

891 दिन की देरी का हिसाब और अफसरों की हां में हां 

157 दिन की देरी अस्पताल के एक ब्लॉक को ध्वस्त करने में हुई। जबकि शासन का अतिक्रमण विरोधी अमला ऐसे काम के लिए सिर्फ 3 दिन का समय लगाता है। 
33 दिन बिल्डिंग की लिफ्ट पिट की डिजाइन मिलने में लगे। 
66 दिन की देरी कॉलेज बिल्डिंग में अतिरिक्त कार्य जोड़ने के कारण। 
375 दिन की देरी कैंटिन टेंपर की शिफ्टिंग के कारण हुई। 
326 दिन की देरी यानी करीब एक साल का समय स्लाइडिंग विंडो को बदलकर केसमेंट विंडोे करने में। 2 साल में पूरा भवन बनना था। 1 साल विंडो बदलने में लगा दिया। 

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