नागद्वार मेला: मप्र में अमरनाथ जैसी कठिन यात्रा | NAGDWAR MELA PACHMARHI

Bhopal Samachar
सौरभ सिंह राजपूत। ये यात्रा हर साल अगस्त माह नागपंचमी के 11 दिन पहले शुरु की जाती है। पचमढ़ी के दोनों ओर छिंदवाड़ा जिला एवं होशंगाबाद जिला स्थित है अत: दोनों जिलों की का प्रशासन इस यात्रा के लिए व्यवस्थाएं जुटाता है। सतपुड़ा के ऊंचे पेड नादियां, पहाड़ एवं झरनों को पार करते हुए लगभग 12 km तक का ऊंची पहाड़ियों से गुजरते हुए यात्रा करना होता है। लौटने में यात्रियों को दो दिन लग जाते है। 

अमरनाथ जैसी कठिन यात्रा


आमतौर पर सीजन के मुताबिक यात्रियों को बारिश का सामना करना पडता है। कहा जाता है की ये अमरनाथ जैसी कठिन यात्रा ही है। यहाँ पर आपको पैदल ही चलना है। कोई भी घोड़े खच्चर की सुविधा नहीं है। नागद्वार के यात्रा करते समय उँचें पहाड़ों पर गुफाएं भी नजर आती हैं। जिसका अपना धार्मिक महत्व है। यात्रा के दौरान रास्ते में देनवा नदी सहित करीब 20 छोटे-छोटे नाले पड़ते हैं। जिनको आपको पार करते हुए जाना होता है। इस पहाड़ी नालों के कलरव के बीच उंचे पहाडोें से गिरने वाले झरने मन मोह लेते हैं। नागद्वार की गुफा करीब 35 फीट लंबी है।

पहाड़ी के नीचे नदियों से घिरा कजरी गाँव स्वर्ग का लगता है


नागद्वार तक पहुँचने के लिए पर्यटकों को कई पहाडियों से चढना उतरना होता है। रास्ते में काजली गाँव पड़ता है जो चारों और से नदियों से घिरा हुआ ओर पहाडियों से ढाका हुआ है। ऊंचाई से देखने में यह गाँव इतना व्यवस्थित लगता मानो किसी चित्रकार ने यहाँ पर हर मकान, खेत नदियों को अपने रंगों से रंगा हो। यहाँ काजली वन ग्राम में पहले कुछ आदिवासी परिवार बसते थे। जिन्हे पेंच टाइगर रिजर्व ने हटा दिया। अब नागद्वारी यात्रा में आने वालों के लिए यहाँ ठहरने की खास व्यवस्था की जाती है। प्रशासन की और से यहाँ 100 वाटरप्रुफ टेंट लगाये जाते है, इसके आलावा जगह-जगह डस्टबिन और शौचालय की व्यवस्था की जाती है।

यात्रा के पड़ाव


आप किसी भी रास्ते से आएं आपको पचमढ़ी तक पहुँचना ही होगा। क्योंकि मुख्य पड़ाव पचमढ़ी ही है और यात्रा की शुरुआत यहीं से होती है। 
धूपगढ: पचमढ़ी की सैर कर चुके लोग धूपगढ से अनभिज्ञ नहीं होगें। यहाँ का सूर्यास्त प्रसिद्ध है और फोटोग्राफी के लिए बेहतरीन जगह है।

यात्रा का मार्ग इस प्रकार है


धूपगढ गणेश टेकरी, काजली, पश्चिम द्वार, पदमशेष द्वारा,अंबामाई।  
अंबामाई यात्रा का अंतिम पड़ाव माना जाता है। नागद्वार यात्रा में मुख्य पड़ाव है। स्वर्गद्वार तक पहुँचने के लिए दो पहाडियों के बीच लोहे की खड़ी सीढियां लगाई गई हैं। 

इस यात्रा की मान्यता, लोग क्यों इतनी कठिन यात्रा करते हैं


इसे नाग राज की दुनिया भी कहा जाता है। वैसे भी हमारे देश में किसी खास मौसम में की जाने वाली यात्रा का कोई ना कोई महत्व होता है या उसके पीछे कुछ कहानियाँ होती है। इस यात्रा का किसी पुराण या किसी भी धार्मिक पुस्तक से कोई लेना देना नहीं है। इसकी बस इतनी ही मान्यता है की काजली गाँव में रहने वाली एक महिला ने पुत्र प्राप्ति के लिए नागराज को काजल लगाने की मन्नत की थी। पुत्र प्राप्ति के बाद वह काजल लगाने पहुँची तो नागराज का विशाल रुप देखकर मोक्ष को प्राप्त हो गई। ये यात्रा लगभग 100 साल से शुरु हुई है। 

एडवेंचर के शौकीन हैं तो यहां जरूर आइए


अगर आप सभी कुछ एडवेंचर और कुछ नया देखना चाहते है तो इस यात्रा को जरुर करें। घने जंगल, ऊंची चोटियों के बीच कल कल करती नदियों और झरनों का आकर्षण आपके मन को मोह लेगा। आप चाहे तो वहाँ के आदिवासियों के अपने साथ गाइड के रुप में और अपना सामान लेकर चलने के लिए रख सकते है। कुछ शुल्क दे देंगे तो वो आपका हंसी खुशी सहयोग करेंगे। 

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