भोपाल। सीएम कमलनाथ ने कल ही ओबीसी आरक्षण को संविधान सम्मत बताया था परंतु हाईकोर्ट में मामला अटका हुआ है। यही कारण है कि मप्र लोक सेवा आयोग (पीएससी) से होने वाली प्रशासनिक अधिकारियों समेत अन्य भर्ती परीक्षाओं की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पा रही है। याद दिला दें कि 20 साल पहले दिग्विजय सिंह ने भी ऐसा ही किया था परंतु वो कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को न्यायोचित साबित नहीं कर पाए, 4 साल तक भर्तियां अटकीं रहीं और कांग्रेस सरकार के खिलाफ माहौल बना। बाद में भाजपा सरकार ने आरक्षण वापस लिया तब कहीं जाकर एमपीपीएससी परीक्षाएं शुरू हो पाईं थीं।
पत्रकार श्री गिरीश उपाध्याय की रिपोर्ट के अनुसार एडवोकेट आदित्य संघी ने बताया कि प्रदेश सरकार ने पहले 8 मार्च को अध्यादेश जारी कर ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27% कर दिया, फिर एक्ट पारित कर दिया गया। वहीं, 10% आरक्षण इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन (ईडब्ल्यूएस) के लिए लागू किया गया। एससी को 16%, एसटी को 20% आरक्षण है। ऐसे में आरक्षण 73% हो गया है, जबकि इंदिरा शाहनी बनाम भारत सरकार के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने करीब 26 साल पहले अपने जजमेंट में कहा था कि कुल आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती। ऐसा होना संविधान के खिलाफ है।
मप्र हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद सरकार को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। इस मामले की 9 सितंबर को फिर से सुनवाई होगी। याचिका भोपाल के प्रत्येश द्विवेदी, टीकमगढ़ के पारस जैन, मुरैना के नीतेश जैन और छिंदवाड़ा के रामसुंदर रघुवंशी की ओर से दाखिल की गई है। याचिकर्ताओं के वकील आदित्य संघी ने बताया कि तमिलनाडु के बाद मप्र दूसरा राज्य है, जहां आरक्षण की सीमा 50% से अधिक होकर 73% हो गई है। महाराष्ट्र में भी 50% से अधिक आरक्षण है।
2001 में भी ओबीसी आरक्षण 27% किया था, फिर वापस लेना पड़ा
दिग्विजय शासन काल में भी ओबीसी आरक्षण 27% किया गया था। इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस दौरान सरकार की ओर से हाईकोर्ट में सही ढंग से जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया, इसके चलते 2001 से 2005 तक भर्ती प्रक्रिया रुकी रही थी। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने 2006 में वापस ओबीसी आरक्षण कम किया था। इसके बाद लगातार भर्तियां हो रही थीं, लेकिन अब एक बार फिर एमपीपीएससी का कैलेंडर गड़बड़ा गया है। इससे लाखों युवा परेशान हैं।
पुराने नियमों से ही अधिसूचना जारी हो
पीएससी से होने वाली भर्ती प्रक्रिया में हर साल प्रदेशभर से ढाई लाख से अधिक उम्मीदवार शामिल होते हैं। अब उम्मीदवारों के सामने सबसे बड़ी चिंता रोजगार की है। बड़ी मुश्किल से परीक्षाएं शुरू हो पाई थीं, लेकिन आरक्षण की नई व्यवस्था ने विवाद खड़ा कर दिया है। उम्मीदवारों का कहना है कि पुराने नियमों से ही पीएससी का नोटिफिकेशन जारी किया जाना चाहिए। पीएससी से हर साल राज्य प्रशासनिक सेवा के करीब 500 पदों के लिए भर्तियां निकलती हैं।
फैसले पर पहले भी लग चुकी है रोक
मप्र हाईकोर्ट ओबीसी को 27% आरक्षण देने के कमलनाथ सरकार के फैसले पर पहले भी रोक लगा चुकी है। मार्च 2019 में जस्टिस आरएस झा व संजय द्विवेदी की खंडपीठ ने आदेश में कहा था कि 25 मार्च से एमबीबीएस में चयन के लिए प्रस्तावित काउंसिलिंग में ओबीसी को 14% आरक्षण दिया जाएगा। जबलपुर की असिता दुबे, भोपाल की ऋचा पांडे व सुमन सिंह ने याचिका में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 16 में प्रावधान है कि एससीएसटी-ओबीसी को मिलाकर आरक्षण 50% से अधिक नहीं होना चाहिए।