भोपाल। हर बार की तरह इस बार भी जन्माष्टमी (Janmashtami) को लेकर असमंजस की स्थिति है। कहीं 23 अगस्त को तो कहीं 24 अगस्त को मनाई जाएगी। भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद की अष्टमी तिथि को हुआ था। अष्टमी तिथि 23 को पड़ रही है इसलिए कहीं 23 तो कहीं 24 अगस्त को मनाई जाएगी। जिनके जन्म के संयोग मात्र से बंदीगृह के सभी बंधन स्वतः ही खुल गए , सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए , माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठीं, ऐसे भगवान श्री कृष्ण को मोह लेने वाला अवतार माना गया है। इस रात में योगेश्वर श्री कृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है।
जन्माष्टमी के व्रत की विधि / Janmashtami Vrat vidhi
जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) का त्योहार पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग दिन भर व्रत रखते हैं और अपने आराध्य श्री कृष्ण का आशीर्वाद पाने के लिए उनकी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। सिर्फ बड़े ही नहीं बल्कि घर के बच्चे और बूढ़े भी पूरी श्रद्धा से इस व्रत को रखते हैं. जन्माष्टमी का व्रत कुछ इस तरह रखने का विधान है। जो भक्त जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं उन्हें एक दिन पहले केवल एक समय का भोजन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोला जाता है।
जन्माष्टमी के व्रत का महत्त्व / Importance of Janmashtami
जन्माष्ठमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। भविष्य पुराण में इस व्रत के सन्दर्भ में उल्लेख है कि जिस घर में यह देवकी-व्रत किया जाता है वहां अकाल मृत्यु,गर्भपात,वैधव्य,दुर्भाग्य तथा कलह नहीं होती। जो एक बार भी इस व्रत को करता है वह संसार के सभी सुखों को भोगकर विष्णुलोक में निवास करता है।
जन्माष्टमी की पूजन विधि / Janmashtami Poojan vidhi
जन्माष्ठमी केदिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें । इसके बाद पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके व्रत का संकल्प लें। माता देवकी और भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। पूजन में देवकी,वासुदेव,बलदेव,नन्द, यशोदा आदि देवताओं के नाम जपें। रात्रि में 12 बजे के बाद श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पंचामृत से अभिषेक कराकर भगवान को नए वस्त्र अर्पित करें एवं लड्डूगोपाल को झूला झुलाएं। पंचामृत में तुलसी डालकर माखन-मिश्री व धनिये की पंजीरी का भोग लगाएं तत्पश्चात आरती करके प्रसाद को भक्तजनों में वितरित करें।