नई दिल्ली। राजनीतिक दलों की कार्रवाईयों से दुखी जनता अब विकास के व्यवस्था अपने हाथों में लेने लगी है | मुम्बई और पहले हैदराबाद कर्नाटक और अब कल्याण कर्नाटक कहे जाने वाले हिस्से में ये जनांदोलन चल रहे हैं| और ये चले भी क्यों नहीं, राजनीतिक दल पारदर्शिता नहीं बरतते हैं, चुनाव जीतने के बाद उनका व्यवहार बदल जाता है | गाँव विकास, जिला विकास, प्रदेश विकास की जगह स्वयं विकास और दल विकास उनकी प्राथमिकता हो जाती है | बड़ी-बड़ी अट्टालिका नुमा कार्यालय, वाहनों का बेडा और समस्त सुविधा जिस ज्ञात- अज्ञात चंदे से जुटाते हैं, उसकी पूरी जानकारी तक नहीं देते | इनसे और उम्मीद रखने के स्थान पर जनता ने विकास का काम अपने हाथों में लेना शुरू कर दिया है |
पहले मुम्बई | मुंबई में करीब 3200 एकड़ के जंगल को बचाने के लिए जो 3 लाख लोग एकजुट हुए हैं। कुछ साल पहले तक ये एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे। अब एक साथ ‘सेव आरे फॉरेस्ट’ मुहिम चला रहे हैं। आरे फॉरेस्ट संजय नेशनल पार्क का हिस्सा है। यह जंगल पश्चिम उपनगर के बीचों-बीच है। इसलिए इसे मुंबई का ग्रीन लंग भी कहते हैं। इसकी 1000 एकड़ जमीन पर पहले ही अतिक्रमण और निर्माण कार्य हो चुका है।बाकी 2200 एकड़ जमीन में से 90 एकड़ पर कुलाबा-बांद्रा-सीप्ज मेट्रो-3 के लिए कारशेड बनाया जाएगा। दावा है कि यहां 3600 पेड़ हैं। मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए इसमें से 2700 पेड़ काटे जाएंगे। यह ओशिवरा नदी (अब नाला) और मीठी नदी का इलाका भी है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे मुंबई को बाढ़ जैसे हालात में नहीं झोंकना चाहते। जंगल रहे तो बाढ़ रोकी जा सकती है। अभिनेत्री श्रद्धा कपूर और जॉन अब्राहम सहित बॉलीवुड की कई हस्तियों ने आरे फॉरेस्ट सेव मुहिम का समर्थन किया है। गायिका लता मंगेशकर ने भी कहा था कि मेट्रो के लिए पेड़ों को काटना हत्या के समान है। इस जंगल को बचाने के लिए ऑनलाइन याचिका ही दायर हुई है। इसका 3 लाख लोगों ने दस्तखत कर समर्थन किया है। याचिका पर आज सुनवाई होगी।
अब कर्नाटक | कर्नाटक की सरकार आज कर्नाटक के कुछ जिलों के मिलाकर कल्याण कर्नाटक विभाग नामक एक नई संरचना की घोषणा करने जा रही है | सरकार के इस निर्णय के पीछे जनता द्वारा कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सेनिटेशन के लिए इस इलाके में जगाये गये अलख का परिणाम है | इसकी संक्षिप्त कहानी | निजाम के राज में इन 5 जिलों हैदराबाद- कर्नाटक विभाग कहा जाता था | यहाँ के लोगों अकर्मण्य की संज्ञा दे दी गई थी | बौध्धिक और आर्थिक क्षमता पर भी प्रश्न चिन्ह था | इसे मिटाने का बीड़ा एक संस्था ने उठाया और सरकार की सहायता को दरकिनार करते हुए कृषि, शिक्षा स्वास्थ्य और प्रधानमन्त्री के आव्हान से पहले शौचालय निर्माण की सफल मुहीम चलाई | अब यह जन आन्दोलन विकास के नये कीर्तिमान बनाने निकला है सरकार खुद साथ आई है | इस नई संरचना की घोषणा करके |
अब राजनीतिक चंदे| लोकसभा चुनाव 2019 में हार के सदमे से उबरने में लगी कांग्रेस पार्टी के चंदे में पिछले साल के मुकाबले में बढ़ोतरी देखने को मिली है. चुनाव आयोग को दी जानकारी के मुताबिक चुनावी साल (2018-19) में कांग्रेस को पिछले साल (2017-18) के मुकाबले ज्यादा चंदा मिला है| कांग्रेस के चुनावी चंदे में 5 गुणा की बढोतरी देखने को मिली है| हालाँकि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस अभी भी काफी पीछे है | भाजपा ने अब तक 2018-19 की रिपोर्ट आयोग को नहीं सौंपी है लेकिन 2017-18 (पिछले साल) भाजपा को 1027 करोड रुपए चंदे में मिले थे| इतनी भारी रकमों में से किसी भी दल ने जनसामान्य के हित का कोई काम नहीं किया | अपने आलीशान दफ्तर, नेताओं के दौरे, वाहनों के बेड़े से क्या विकास हो सकता है ? अब जनता अपने हाथ में विकास के कार्य ले रही है,ये चेतावनी है राजनीतिक दलों को और उनकी सरकारों को |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।