देश की शौचालय संस्कृति और दो बच्चों की मौत | EDITORIAL by Rakesh Dubey

भोपाल। समय आ गया है, देश के जातिगत ढांचे पर पुनर्विचार का। हर भारतीय को चाहे वो समाज में किसी भी जाति या वर्ग का हो, उसे पीछे पलटकर देखने की जरूरत है कि हमारे मनीषी क्या कह गये हैं और हम क्या कर रहे हैं ? मध्यप्रदेश के शिवपुरी में दो दलित बच्चों को कुछ लोगों ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। घटना का मूल पंचायत द्वारा शासकीय राशि से शौचालय न बनाने का है। इसे कई रंग में रंगने की कोशिश हो रही है, सबसे आसान रंग हरिजन पर सवर्ण अत्याचार का है, लेकिन यहाँ ऐसा नहीं है। यहाँ मामला नवशक्ति सम्पन्न सरपंच सूरज सिंह यादव (Sarpanch Suraj Singh Yadav) और उसके आदमियों की कथित हठधर्मिता का है, जो दो बच्चों को खुले में शौच करने पर पर पीट-पीट कर  मार देता है। उसका गाँव खुले में शौच से मुक्त है साथ ही वो अपनी दबंगई से इन बच्चों के घर में शौचालय भी नहीं बनने  देता।

राजनीति ने समाज का बंटवारा करते-करते एक नये शक्ति सम्पन्न ऐसे समाज की रचना की है जो हर एक अपने सामने बौना समझता है। इस समाज की जातियों की पहचान पार्षद. पंच, सरपंच, महापौर, विधायक, मन्त्री और सांसद जैसे गौत्र से होती है इस श्रेणी के व्यक्ति अपने राजनीतिक सम्प्रभु को छोडकर सबको अपने से नीचा समझते हैं। इन बच्चों की पीट-पीटकर हत्या पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्य सरकारों पर हमला बोला है। मायावती ने इसको लेकर एक ट्वीट किया। मायावती ने ट्वीट में लिखा, 'देश के करोड़ों दलितों, पिछड़ों व धार्मिक अल्पसंख्यकों को सरकारी सुविधाओं से काफी वंचित रखने के साथ-साथ उन्हें हर प्रकार की द्वेषपूर्ण जुल्म-ज्यादतियों का शिकार भी बनाया जाता रहा है और ऐसे में मध्य प्रदेश के शिवपूरी में 2 दलित बच्चों की नृशंस हत्या अति-दुःखद व अति-निन्दनीय।' वैसे इस वर्ग के लोगो के प्रति किसी भी दल की सहानुभूति इस लिए नहीं है कि वे दलित हैं। 

बल्कि इसलिए है कि इस समाज का  वोट प्रतिशत बड़ा है। देश में दलितों (अनुसूचित जातियों) और आदिवासियों (अनुसूचित जनजातियों) की जनसंख्या वृद्धि दर भी अन्य समुदायों से अधिक है। सन 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियां, कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत थीं। यह आंकड़ा सन 1951 में 6.23 प्रतिशत था। इसी तरह सन 1951  में अनुसूचित जातियों का आबादी में प्रतिशत 15 था जो कि सन 2011 में बढ़कर १६.६ प्रतिशत हो गया।

मायावती ने एक अन्य ट्वीट में सवाल पूछा है कि, 'कांग्रेस व बीजेपी की सरकार बताए कि गरीब दलितों व पिछड़ों आदि के घरों में शौचालय की समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की गई है? यह सच बहुत ही कड़वा है तो फिर खुले में शौच को मजबूर दलित बच्चों की पीट-पीट कर हत्या करने वालों को फांसी की सजा अवश्य दिलायी जानी चाहिए।' मायावती के समर्थन से ही मध्यप्रदेश सरकार टिकी है | ऐसे में सवाल की धार उनकी ओर ही है | सबसे ज्यादा गंभीर बात यह है दोनों बच्चे रोशनी (12) और अनिवाश (10) घर में शौचालय के अभाव में बाहर शौच करने के लिए गए थे। उनके घर में शौचालय का अनुदान उसी सरपंच को देना था जिसके कारिंदों ने  उन्हें मौत दे दी।

एक जमाने में हमारे यहां बहुत से सामाजिक सुधार हुये | दयानंद सरस्वती, राजाराम मोहन राय, कुछ हद तक मंडल कमीशन के समय भी हुआ, लेकिन अब जो भी सुधार किया जा रहा है वह ज्यादातर एनजीओ की ओर से किया जा रहा है| कोई राजनैतिक दल जैसे कांग्रेस भाजपा या अपने को सांस्कृतिक कहने वाले संघ समाज सुधार की दिशा में  बहुत दूर तक आगे नहीं बढ़े हैं | जबतक हम सभी इसके लिए नहीं आगे आयेंगे, यह सब ऐसे ही चलेगा | देश में जब समाज सुधार की बात आती है, तो यहां के लोग बहुत ही छोटे मन के हो जाते हैं| कहने लगते हैं हमारी जो पुरानी संस्कृति है, पुरानी मान्यता है उसे संरक्षित  करना चाहिए| हर घर में शौचालय होना भी मोदी संस्कृति का हिस्सा है न |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!