लखनऊ। किसी भी कर्मचारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के लिए पर्याप्त आधार होने चाहिए। महज स्क्रीनिंग कमेटी के नतीजे के आधार पर ऐसा नहीं किया जा सकता। जब सारे तथ्यों से यह जाहिर हो कि संबंधित कर्मचारी की कोई योग्यता नहीं रह गई है, तब जनहित में ऐसा फैसला किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के इस आशय के दो अलग फैसलों को आधार बनाते हुए हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राजस्व विभाग की एक कर्मी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने के आदेश को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान की पीठ ने यह आदेश कबूतरी देवी की याचिका पर दिया। आदेश याचिका में राज्य सरकार, प्रमुख सचिव राजस्व व अन्य को पक्षकार बनाया गया है।
राजस्व विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मी याची के अधिवक्ता राजेंद्र सिंह चौहान ने याची को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के विभाग के आदेश को चुनौती दी थी। अधिवक्ता ने याची के पक्ष में समान प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट व लखनऊ हाईकोर्ट द्वारा पारित दो अलग निर्णयों का हवाला दिया। विभाग से पेश वकील ने आदेश को सही ठहराते हुए दलील दी।
अदालत ने पक्षों की दलीलें सुनने व सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों की नजीरों का अवलोकन करने के बाद कहा कि याची को भी इन फैसलों के आलोक में समान राहत मिलनी चाहिए। कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए याची को अनिवार्य सेवानिवृत्त किए जाने के आदेश को खारिज करते हुए इसके अमल पर रोक लगी दी।