नई दिल्ली। अमेरिका के ह्यूस्टन में आयोजित 'हाउडी मोदी' (Howdy Modi) कार्यक्रम के बाद उसकी समीक्षा का दौर शुरू हो गया है। इस आयोजन में काफी सारी महत्वपूर्ण बातें हैं परंतु एक बात है जो सबसे अलग है। भारत के इतिहास में पहली बार भारत के प्रधानमंत्री ने अमेरिका की चुनावी राजनीति में दखल दिया है। पीएम मोदी ने 'अबकी बार मोदी ट्रंप सरकार' का ऐलान कर दिया। इस मामले में 2 तरह की समीक्षाएं सामने आ रहीं हैं।
'अबकी बार मोदी ट्रंप सरकार' बड़ा जोखिम भरा कदम है
उम्रदराज आलोचकों का मानना है कि इस इवेंट में, 'अबकी बार मोदी ट्रंप सरकार' का नारा देकर पीएम नरेंद्र मोदी ने दूसरे टर्म के लिए ट्रंप का समर्थन किया है। अमेरिका की राजनीति भारत से बिल्कुल अलग है। एक विदेशी नेता को अमेरिका की घरेलू राजनीति में उतरना बहुत रिस्की हो सकता है। हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि अभी हाल में मोदी के अच्छे दोस्त और इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू चुनाव हार गए हैं। अगर डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) राष्ट्रपति चुनाव हार जाते हैं तो ऐसे में मोदी (PM Modi) के लिए परिस्थितियां काफी कठिन हो जाएंगी। नए डेमोक्रेट राष्ट्रपति से संबंध बहाल करना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा। ये एक ऐसी स्थिति होगी, जिसके लिए वह खुद को ही दोष देंगे।
पीएम मोदी जोखिम नहीं उठाते तो पछताना पड़ता
नई उम्र के समीक्षकों का कहना है कि अभी के हालात देखकर भारत के लिए ट्रंप ही सही हैं। क्योंकि दूसरी तरफ बर्नी सेंडर्स, एलिजाबेथ वारेन और कमला हैरिस हैं। वह आर्टिकल 370 और कश्मीर में मानवाधिकार के मुद्दे पर खुलकर बोल रहे हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है। ट्रंप के सत्ता में लौटने के पूरे चांस हैं। डेमोक्रेटिक का पक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ और उदासीन है। ऐसे में ट्रंप पर दांव लगाना कुछ गलत नहीं है।