जबलपुर। जबलपुर रेलवे स्टेशन से महज 5 किमी दूर अधारताल रेलवे स्टेशन है, लेकिन यहां पर मौजूद यात्री सुविधाएं, सुरक्षा व्यवस्था और हालात देखकर आप को बिल्कुल भी ऐसा नहीं लगेगा कि यह जबलपुर शहर की सीमा में आता है।
पश्चिम मध्य रेलवे जोन के मुख्यालय से भी महज 5 किमी दूर है, लेकिन इस रेलवे स्टेशन के हाल ऐसे हैं कि यहां पर ढंग के प्लेटफार्म तक नहीं हैं। कोच की सीढ़ियों के सहारे यात्रियों को ट्रेन में चढ़ना पड़ता है। रात के वक्त स्टेशन से लेकर पहुंच मार्ग तक में अंधेरा छा जाता है। प्लेटफार्म पर न तो शेड हैं, न ही बैठने के लिए कोई बेहतर व्यवस्था है। एक से दूसरे प्लेटफार्म तक जाने के लिए यात्री के लिए फुट ओवरब्रिज भी नहीं हैं। यात्रियों को पटरी पार करके ही दूसरी तरफ जाना पड़ता है। पमरे जोन के महाप्रबंधक से लेकर मंडल के डीआरएम और जनप्रतिनिधियों द्वारा कभी इस स्टेशन के हालात पर ध्यान ही नहीं गया।
अधारताल स्टेशन पहुंचने के लिए महाराजपुर के व्हीकल मोड़ चौराहे से यात्रियों को तकरीबन 3 किमी का सफर तय करना होता है। कहने के लिए यह सिर्फ तीन किमी का सफर है, लेकिन इसमें अधूरा फ्लाई ओवर, निर्माणधीन अंडरब्रिज, जर्जर सड़कें और अनगिनत गड्ढे हैं। इसके अलावा रेल लाइन क्रास करने के लिए आने और जाने, दो रेल फाटक बने हैं, जिसमें से एक बंद रहता है और दूसरे पर ट्रेन आने के 15 मिनट पहले से लेकर 15 मिनट बाद तक में दोनों ओर लंबा जाम लग जाता है। इन बाधाओं को पार करने के बाद ही यात्री अधारताल स्टेशन पहुंच पाते हैं।
जैसे-तैसे स्टेशन पहुंचने के बाद आप को यहां न तो प्यास बुझाने के लिए ठंडा पानी मिलेगा, न ही छांव में खड़े होने के लिए शेड। रेलवे ने प्लेटफार्म पर छोटे-छोटे तीन-चार शेड बनाए हैं, लेकिन भीड़ की वजह से यहां भी खड़े होने नहीं मिलेगा। स्टेशन पर यात्री सुविधा को लेकर अभी कोई व्यवस्था नहीं है। प्लेटफार्म पर बैठने के लिए गिनती की कुर्सियां लगी हैं। ट्रेन का इंतजार करते हुए यदि आप को भूख लग जाए तो दूर-दूर तक एक भी स्टॉल नहीं मिलता।
अधारताल स्टेशन पर दो प्लेटफार्म हैं। जबलपुर की ओर जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 1 पर रुकती है तो वहीं दूसरी ओर कटनी की ओर जाने वाली ट्रेनों को रोका जाता है। सबसे बड़ी समस्या यहां ट्रेन के लेवल का प्लेटफार्म न होना है। इससे ट्रेन में बैठने के लिए यात्रियों को कोच की 4 फीट ऊंची सीढ़ियां चढ़ना होता है। इस दौरान महिला, बच्चे और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है। ट्रेन में चढ़ने के लिए उन्हें दूसरों की मदद लेनी पड़ती है।