टीकमगढ़। सुप्रीम कोर्ट ने टीकमगढ़ पुलिस के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। मामला 2006 से फरार चल रहे एक अपराधी का है, जिसकी 2019 में मौत हो गई। 2007 में एसपी टीकमगढ़ ने सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होकर कहा था कि अपराधी फरार है, उस पर 10 हजार का इनाम घोषित कर दिया है। अपराधी की मौत के बाद पुलिस ने ही उसका मृत्यु प्रमाण पत्र पेश कर दिया। सुप्रीम कोर्ट को संदेह है कि टीकमगढ़ पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने की कोशिश ही नहीं की, बल्कि उसे साजिश के तहत फरार बताते रहे और सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया।
जांच के लिए एक समिति बनाने का आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 से फरार चल रहे सजायाफ्ता घसीटा को गिरफ्तार करने में पुलिस की मिलीभगत की जांच के लिए एक समिति बनाने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा है कि "सरसरी तौर पर देखने से लगता है कि गिरफ्तारी वारण्ट होने के बावजूद घसीटा के 13 साल से पुलिस की गिरफ्त से बाहर रहने के पीछे पुलिस की मिलीभगत रही है और पुलिस जानबूझकर घसीटा का पता ठिकाना निचली अदालत से छिपाती रही है।
एसपी ने खुद हाजिर होकर कहा था कि अपराधी फरार है
कोर्ट ने मध्यप्रदेश डीजीपी को आईजी रैंक के अधिकारी से पूरे मामले में पुलिस की मिलीभगत की जांच करने के आदेश दिए हैं। एक फौजदारी मामले में 10 साल कारावास की सजा पाए घसीटा ने सुप्रीम कोर्ट में निचली अदालत के खिलाफ अपील की थी। जिसे 2006 में खारिज कर कोर्ट ने टीकमगढ़ पुलिस को घसीटा को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। इसी मामले में गिरफ्तारी न होने पर 2007 में पुलिस अधीक्षक टीकमगढ़ को अदालत में हाजिर होना पड़ा था। उन्होंने बेंच को बताया था कि घसीटा फरार है और उस पर 10 हजार रुपये का ईनाम रखा गया है।
मौत के बाद पुलिस ने ही मृत्यु प्रमाण पत्र पेश कर दिया
जहां अदालत बार-बार घसीटा को गिरफ्तार करने का आदेश देती रही वहीं जिम्मेदार और समय मांगते रहे। मामला तब बिगड़ा जब इसी साल अगस्त में एडिशनल सेशन जज कोर्ट को जानकारी दी गई कि जनवरी 2019 में घसीटा की मौत हो चुकी है और पुलिस ने उसका मृत्यु प्रमाण पत्र भी प्राप्त कर लिया है। 13 साल से पुलिस जिस मुज़रिम को गायब बता रही थी उसकी मौत की जानकारी देना अब पुलिस को मंहगा पड़ता नजर आ रहा है।