सलकनपुर देवी: इनकी कृपा से शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बने | SALKANPUR MATA KI KATHA

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप स्थित है 'विंध्यवासिनी विजयासन देवी मंदिर सलकनपुर' लोग इस मंदिर को 'सलकनपुर माता मंदिर' के नाम से भी पुकारते हैं। यह एक चमत्कारी स्थान हैं। लाखों श्रद्धालु यहां अपने अनुभव सुनाते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी इन्हीं की कृपा से पहले सांसद और फिर मुख्यमंत्री बने। कहते हैं सलकनपुर माता की कृपा से ना केवल खाली झोलियां भर जातीं हैं बल्कि धन धान्य के भंडार भी भरते हैं और जीवन में सफलताएं प्राप्त होतीं हैं। 

1400 सीढ़ियों पर जयमाता दी का उद्घोष मनोकामना पूर्ति कराता है


यह देवी मंदिर 1000 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर पर पहुंचने के लिए भक्तों को 1400 सीढ़ियों का रास्ता पार करना पड़ता है। जबकि इस पहाड़ी पर जाने के लिए कुछ वर्षों में सड़क मार्ग भी बना दिया गया है। इसके अलावा दर्शनार्थियों के लिए रोप-वे भी शुरू हो गया है, जिसकी मदद से यहां 5 मिनट में पहुंचा जा सकता है। किवदंती है कि इन 1400 सीढ़ियों पर 'जय माता दी' का उद्घोष करते हुए जाने से ही मनोकामना की पूर्ति होती है। देवी मां का यह भोपाल से 75 किमी दूर है। 

विजयासन देवी, माता पार्वती का रूप हैं, कुलदेवी हैं


मां बिजासन के दरबार में दर्शनार्थियों की कोई पुकार कभी खाली नहीं जाती है। माना जाता है कि मां विजयासन देवी पहाड़ पर अपने परम दिव्य रूप में विराजमान हैं। विध्यांचल पर्वत श्रंखला पर विराजी माता को विध्यवासिनी देवी भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं, जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध किया था और सृष्टि की रक्षा की थी। विजयासन देवी को कई लोग कुलदेवी के रूप में भी पूजते हैं। 

मां का आसन गिरा, इसलिए विजयासन


शुरू से ही लोगों के मन में मां विजयासन धाम की उत्पत्ति, प्राकट्य, मंदिर निर्माण को लेकर जिज्ञाषा रही है लेकिन अभी तक इसके कोई भी ठोस साक्ष्य और प्रमाण नही मिल पाए हैं। कुछ पंडितो का कहना है कि यहां मां का आसन गिरने से यह विजयासन धाम बना लेकिन विजय शब्द का योग कैसे हुआ, इसका सटीक उत्तर वे नही दे पाएं है। लेकिन मां विजायासन धाम के प्राकट्य का का सटीक उत्तर व उल्लेख श्रीमद् भागवत महापुराण में है। 

रक्तबीज पर विजय पाई, देवताओं ने आसन दिया इसलिए विजयासन


श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार जब रक्तबीज नामक देत्य से त्रस्त होकर जब देवता देवी की शरण में पहुंचे। तो देवी ने विकराल रूप धारण कर लिया। और इसी स्थान पर रक्तबीज का संहार कर उस पर विजय पाई। मां भगवति की इस विजय पर देवताओं ने जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ। मां का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।

सलकनपुर देवी धाम का निर्माण किसने कराया था

मंदिर निर्माण के संबंध में कहा जाता है कि आज से करीब 300 वर्ष पूर्व बंजारो द्वारा उनकी मनोकामना पूर्ण होने पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर निर्माण और प्रतिमा मिलने की इस कथा के अनुसार पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे इस स्थान पर विश्राम और चारे के लिए रूके। अचानक ही उनके पशु अदृष्य हो गए।

पहाड़ पर विजयासन की प्रतिमा का पता कैसे चला


इस तरह बंजारे पशुओं को ढूंडने के लिए निकले, तो उनमें से एक बृद्ध बंजारे को एक बालिका मिली। बालिका के पूछने पर उसने सारी बात कही। तब बालिका ने कहा की आप यहां देवी के स्थान पर पूजा-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं। बंजारे ने कहा कि हमें नही पता है कि मां भगवति का स्थान कहां है। तब बालिका ने संकेत स्थान पर एक पत्थर फेंका। जिस स्थान पर पत्थर फेंका वहां मां भगवति के दर्शन हुए। उन्होने मां भगवति की पूजा-अर्चना की। कुछ ही क्षण बाद उनके खोए पशु मिल गए। मन्नत पूरी होने पर बंजारों ने मंदिर का निर्माण करवाया। यह घटना बंजारों द्वारा बताये जाने पर लोगों का आना शुरू हो गया और वे भी अपनी मन्नत लेकर आने लगे।

धुने की स्थापना किसने की थी

हिंसक जानवरों, चौसठ योग-योगिनियों का स्थान होने से कुछ लोग यहां पर आने में संकोच करते थे। तब स्वामी भद्रानंद ने यहां तपस्या कर चौसठ योग-योगिनियों के लिए एक स्थान स्थापित किया। तथा मंदिर के समीप ही एक धुने की स्थापना की। और इस स्थान को चैतन्य किया है। तथा धुने में एक अभिमंत्रित चिमटा, जिसे तंत्र शक्ति से अभिमंत्रित कर तली में स्थापित किया गया है। आज भी इस धुने की भवूत को ही मुख्य प्रसाद के रूप में भक्तगणों को वितरित किया जाता है।

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