नई दिल्ली। यह सच है अब पत्रकारिता वैश्विक रूप से चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। भारत जैसे देश में अदृश्य बंदिशे तैयार हो रही है। पत्रकारिता के “खबरदार तेवर” को खत्म करने में सरकारें लगी हुई हैं। कहीं राज्य तो कही केंद्र, यह सब भोगना क्यों पड़ रहा है? कारण, खबर पालिका कई खांचों में बंटी है। व्यक्तिगत मामले छोड़ भी दें, तो मीडिया नियन्त्रण की बात पत्रकार और प्रबन्धन हमेशा जुदा रहा है। पत्रकार खबर चाहते हैं, प्रबन्धन विज्ञापन। विज्ञापन की राशि का लालच खबर की प्रहार क्षमता को कम कर देता है। भारत के मीडिया उद्योग में लगे गैर पत्रकार, पत्रकार और प्रबन्धन सभी को आस्ट्रेलिया से सबक लेना चाहिए।
लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और सूचना के अधिकार के लिहाज से आस्ट्रेलिया में एक अभूतपूर्व घटना घटी है। आस्ट्रेलिया की केंद्र सरकार द्वारा लाए गए सख्त कानूनों और कुछ कार्रवाइयों के विरोध में अखबार पूरी तरह स्याह हुए और लाल रंग की एक मुहर लगा दी, जिस पर लिखा था सीक्रेट यानी गोपनीय। आस्ट्रेलिया के मीडिया ने देश में मीडिया पर लगाम लगाने की कोशिशों का विरोध करने के लिए ये कदम उठाया है। वहां के मीडिया का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया सरकार का सख्त कानून उन्हें लोगों तक जानकारियां ला पाने से रोक रहा है।
अब भारत, भारत में इस समय मीडिया की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। सरकार के लिए तो गोपनीयता हमेशा ही ढाल की तरह काम करती है, दुर्भाग्य से मीडिया का एक वर्ग सरकार का पिट्ठू बनकर इस ढाल को मजबूत करने में जुटा रहता है और अपने प्रेस की आजादी के लिए संघर्ष को भूल जाता है। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष बने विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने निजी चैनलों पर सदन की कार्यवाही के लाइव प्रसारण पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं, मतलब कर्नाटक विधानसभा की कार्रवाई अब टीवी चैनलों पर नहीं दिखाई जाएगी। इसी तरह पिछले बजट के बाद वित्तमंत्रालय में पत्रकारों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था , जिसके खिलाफ आवाज उठी तो वित्त मंत्रालय के भीतर मीडियाकर्मियों के प्रवेश के संबंध में एक प्रक्रिया तय की गई। अब मंत्रालय में पत्रकारों के प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
उत्तरप्रदेश समेत कई राज्यों में सरकार या प्रशासन के खिलाफ रिपोर्टिंग करने वालों को सजा भुगतनी पड़ी। पत्रकारों की हत्याएं हुई हैं। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स नामक संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता की स्वतंत्रता की स्थिति पर वार्षिक रिपोर्ट जारी करती है। उसके मुताबिक मीडिया की आजादी के मामले में भारत पिछले साल के मुकाबले दो पायदान नीचे गिरा है। भारत 138 वें नंबर से खिसककर 140वें स्थान पर आ गया है। कई बार तो पत्रकारों को जान से मारने की धमकी दी जाती है। अगर पत्रकार महिला हो तो हमला और भी बुरा होता है। वैसे इस रिपोर्ट में ऐसी कोई बात नहीं है, जो देश जानता न हो।
अब आस्ट्रेलिया, व्हिसलब्लोअर्स से लीक हुई जानकारियों के आधार पर प्रकाशित किए गए कुछ लेखों के बाद एक पत्रकार के घर पर छापे मारे गए और इस साल जून में ऑस्ट्रेलिया के एक बड़े मीडिया समूह ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एबीसी) के मुख्यालय पर भी छापे मारे गए थे। इन घटनाओं के विरोध में आस्ट्रेलिया के मीडिया को सरकार के विरूद्ध और प्रेस की आजादी की रक्षा के लिए ऐसा कदम उठाना पड़ा। राइट टू नो कोएलिशन नामक इस अभियान में अखबारों को टीवी, रेडियो और आनलाइन मीडिया का भी साथ मिल रहा है। व्यावसायिक प्रतियोगिता को दरकिनार करते हुए आस्ट्रेलिया के बड़े मीडिया हाउस इस अभियान में साथ उतरे हैं।
एबीसी के एमडी डेविड एंडरसन के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में दुनिया का सबसे गोपनीय लोकतंत्र बनने का खतरा बन रहा है। इस मामले में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का कहना है कि प्रेस की आजादी महत्वपूर्ण है मगर कानून का राज कायम रहना चाहिए। आस्ट्रेलिया की संसद में अगले साल प्रेस की आजादी पर एक जांच रिपोर्ट पेश की जाएगी, तब तक मीडिया किस तरह अपनी आजादी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई लड़ता है, यह देखना होगा। वैसे आस्ट्रेलिया में मीडिया का यह संघर्ष भारतीय पत्रकारों को गौर से देखना ही नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यह भी खतरे की घंटी कभी भी बज सकती है।
मीडिया से जुड़े लोगों के साथ-साथ अब आम जनता भी देख रही है कि कैसे देश के भीतर पत्रकारों के दो वर्ग बना दिए गए हैं। देशहित से जुड़े मसले कोई उठाए न उठाए, लेकिन अगर सरकार की आलोचना जो पत्रकार करे, उसकी देशभक्ति पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं, जबकि चापलूसी की हद तक सरकार की हर बात का समर्थन करने वाले पत्रकार नवाजे जाते हैं। ऐसी प्रवृति तानाशाही की पोषक हैं, जो अंतत: देश की जनता के लिए घातक साबित होगी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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