दीपावली के त्योहार से दो दिन पहले के दिन को धनतेरस कहा जाता है। धनतेरस संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है धन और 'तेरस' का अर्थ हिंदू कैलेंडर के अनुसार 13वें दिन से है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस दिन लोग सोना, सोने के आभूषण, चांदी के सिक्के आदि क्यों खरीदते है लेकिन सवाल यह है कि यह परंपरा क्यों शुरू हुई। इसके पीछे का प्रसंग क्या है।
धनतेरस की पूजा विधि
धनतेरस पर भगवान धनवंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके लिए आप सबसे पहले उनकी तस्वीर स्थापित करें। फिर आचमनी से जल लेकर तीन बार आचमन करें। तस्वीर पर गंगाजल छिड़ककर रोली और अक्षत से टीका करें और इसके बाद वस्त्र या फिर कलावा भगवान को अर्पित करें। गणपति प्रथम पूजनीय हैं इसलिए सबसे पहले गणपति मंत्र बोलकर उनको ध्यान करें और धनतेरस की पूजा शूरू करें। अब हाथ में फूल और अक्षत लेकर भगवान धनवंतरि का ध्यान करें और प्रणाम करते हुए ये दोनों उन्हें अर्पित कर दें। इसके साथ ही ओम श्री धनवंतरै नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद देसी घी के दीपक से उनकी आरती करें।
धनतेरस की कथा | DHANTERAS KI KATHA
राजा हिम के 16-17 वर्षीय बेटे को ऐसा श्राप था कि जैसे ही उसकी शादी होगी ठीक उसके चौथे दिन उसकी मौत हो जायेगी। जब राजकुमार की शादी हुई और उसकी राजकुमारी को इस श्राप की जानकारी हुई तो उसने अपने सुहाग की रक्षा के लिए बहुत सोच विचार के बाद एक गुप्त योजना बनाई राजकुमारी ने राजकुमार से अनुरोध किया कि चौथे दिन वह सोये नही। इसके साथ ही राजकुमारी ने खजाने से सारा सोना,गहने और सिक्के निकलवाकर उस कमरे के दरवाजे पर जमा कराकर दरवाजे के सामने ढेर लगा दिया। फिर राजकुमारी ने अपने महल के अंदर बाहर बड़ी संख्या में दिए जलाए।
इधर रात होते ही राजकुमार को नींद सी आने लगी तो राजकुमारी गीत और भजन गाने लगी। गीत सुनकर राजकुमार की नींद उड़ गयी और वह भी गीत सुनने लगा। कुछ समय बाद जब राजकुमार की मृत्यु का समय आया और यमराज एक सर्प का रूप धारण कर वहां पहुंचे और राजकुमार के कमरे में जाने लगा लेकिन दरवाजे पर मौजूद आभूषण ,सोने ,सिक्को और दियो की चमक और रोशनी ने सर्प को अँधा कर दिया और वह राजकुमार के कमरे में नही घुस सके।
सर्प आभूषण और सोने ,सिक्को के ढेर पर बैठ गया और राजकुमारी के गीतों में मंत्रमुग्ध हो गया। जब सुबह हुयी तो राजकुमार की मौत का समय निकल गया तब यमराज को वापस जाना पड़ा वो भी राजकुमार को बिना नुकसान पहुंचाए। बताते हैं कि तब से धनतेरस को यमदीपदान भी कहा जाता है। इसी वजह से लोग अपने घरों में रात भर दीपक जलाते हैं।यही वजह बतायी जाती है कि इस दिन लोग सोने के गहने ,जेवर व सिक्के हैं।
धन्वंतरि भगवान की आरती…
ओम जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि देवा।
जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन.।।
तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।
देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन.।।
आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन.।।
भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।
आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन.।।
तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।
असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन.।।
हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।
वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का चेरा।।जय धन.।।
धनवंतरिजी की आरती जो कोई जन गावे।
रोग-शोक न आवे, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन.।।