शाबाश इंदौर ! भोपालियों कुछ सीखो | EDITORIAL by Rakesh Dubey

इंदौर शहर बधाई का हकदार है। इस शहर को हाल ही में प्रतिष्ठा पूर्ण ‘अर्थ केयर अवार्ड” मिला है। यह अवार्ड नगरीय जलवायु परिवर्तन की भावी चुनौतियों से निपटने की योग्यता के लिए टाइम्स आफ इण्डिया की ओर से मिला है। इंदौर की जनता ने भविष्य की चुनौतियों को मद्देनजर रख 330 कुओं और बावड़ी को पुनर्जीवित कर लिया है। इंदौर के निवासियों के साथ इंदौर नगर निगम और पर्यावरण नियोजन समन्वय सन्गठन भी बधाई का हकदार है। ये सब आज से 50 साल आगे के इंदौर की कल्पना कर रहे हैं।

इससे इतर प्रदेश की राजधानी भोपाल है, तालाब तलैयों से जिसकी पहचान थी। जिसके कुएं बावड़ी शान कहे जाते थे। उसके तालाबों में मकान दुकान उग आये हैं। यहाँ बड़े और छोटे तालाबों में मिलने वाले नाले रोके नहीं जा सकें है, जापान सरकार से भोज वेट लैंड के विकास के लिए मिला कर्ज चुकाना है, पर उस जमीन पर कुछ और बन  गया है। ये संरचना सरकारी नहीं है, इस जमीन की मिल्कियत किसी निजी नाम पर दर्ज है। स्मार्ट सिटी के नाम पर हजारों पेड़ों की क़ुरबानी हो गई है। सबसे ताज़ा बात यह है कि भोपाल का सबसे व्यस्त न्यू मार्किट में प्रवेश दीवाली के अवसर पर माता मन्दिर की ओर से बंद है। दूकानदार स्मार्ट सिटी की परियोजना को कोस रहे हैं। भोपाल के साथ ये सारा बर्ताव किसी और ने भोपालियों ने ही किया है। भोपाल के निवासियों ने किसी अच्छे कदम की सराहना ही नहीं की। विवाद जरुर किया है। जैसे एक विबाद कल ही पुलिस थाने में पहुंचा है, भोपाल के विलीनीकरण आन्दोलन को लेकर।

भोपाल के बड़े-छोटे तालाबों को देखकर कोई भी कह देता है कि यह जल संकट कभी नहीं होगा | ऐसा नहीं है यदि ज्यादा बारिश के कारण भदभदा और पातरा से पानी नहीं बहे तो तालाब का पानी किस काम का नहीं रहे | भोपाल नगर निगम आधे शहर को नर्मदा का पानी देती है तो आधे शहर में यह पानी उपलब्ध नहीं है | कोलार बांध से पानी लाकर पुराने शहर में पूर्ति होती है लेकिन कोलार रोड पर बसी कालोनियों में गर्मी त्राहिमाम त्राहिमाम करते गुजरती है |

भोपाल और इंदौर की मानसिकता में यह अंतर क्यों है ?वाजिब सवाल है | इंदौर में राजा थे, भोपाल में नवाब | इंदौर ने भविष्य को पहचाना भोपाल ने नये नवाबों [राजनीति और नौकरशाही के गठजोड़ ] के आगे समर्पण कर दिया | इंदौर के बाबत १८८० की एक जानकारी एक मित्र ने साझा की | इंदौर में तब रेल लाइन नहीं थी, पहली टेक्सटाइल मिल लगनी थी | अंग्रेज अफसर की चिंता थी , मशीन कैसे आएगी ? इंदौर का जवाब था, हाथी का उपयोग करके |कालान्तर में इंदौर में कई कपड़ा मिल लगी  और इंदौर कपडा  उद्ध्योग का केंद्र बना और आज भी है | इंदौर में मेडिकल कालेज के निर्माण की कहानी हो या अभी सफाई में नम्बर -१ होने का कीर्तिमान, नागरिक सहयोग की कोई मिसाल नहीं | यूनाइटेड नेशन ने ६८ देशों को इंदौर माडल की सलाह दी है |

भोपाल के साथ दिक्कत यह है उसने कभी भोपाल के लोगों की उत्कृष्टता को सराहा नहीं | भोपाल को राजधानी बनाने का मामला हो या जिला बनाने का या भोपाल में बी एच ई एल जैसे बड़े उद्ध्योग को लाने का भोपाल की उस पीढ़ी का योगदान रहा जो आजादी के समय सक्रिय थी | उसके बाद इस शहर की चिंता किसी ने नहीं की और जिसने इस शहर के लिए कुछ किया उसे सराहा तक नहीं | अभी ताज़ा उदहारण बड़े तालाब के वी आई पी रोड वाले किनारे पर सौर उर्जा के लिए पेनल लगाने का है , लगने के दूसरे ही दिन वे पान की पीक से रंगे थे | राजा भोज सेतु के उद्घाटन के बाद भी ऐसा ही हुआ था | भोपालियों ने भोपाल के विकास से सरोकार नहीं रखा | हर प्रकार की नागरिक  सुविधा और चिंता को खांचे में बांटते रहे अब भी इससे गुरेज  नहीं है | मुख्यमंत्री तक को सरे आम गलत ठहराने में, संकोच नहीं है | बिना कुछ किये सब पाने की नवाबी छोड़ना होगी |

भोपाल भी मिसाल बन सकता है | बस थोड़े अहम और थोड़े वहम को तिलांजली देकर अपने- परायों की सराहना करना सीख जाये, खांचों से निकल कर | कोई भी बंटवारा अच्छा नहीं होता | बंटवारा तभी होता है जब उसमें से कोई हिस्सा माँगा जाये, सारे शहर को अपना समझिये और नागरिक सरोकार को बढाईये | आप  भी मिसाल बन सकते हैं।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!