बलभद्र मिश्रा। यदि पटवारी बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करते तो आपकी सरकार क्या कर रही है? ऐसे में क्या यह कहना गलत होगा कि सरकार पंगु है और क्या इसके पीछे यही बजह है कि वह खुद भ्रष्ट है। आपकी ही सरकार की एक मंत्री हाल में ही यह स्वीकार चुकी हैं कि ट्रांसफर में पैसा लगता है, तो आप बताइये पटवारी रिश्वत नहीं लेगा तो ट्रांसफर में पैसा देगा कहाँ से?
मंत्री जीतू पटवारी और फिर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा पटवारियों के बारे में जो कहा गया, वह कोई नई बात नहीं है, सब जानते हैं पटवारी पैसा लेते हैं, बगैर पैसे के कोई काम नहीं करते, इस तरह की शिकायतें आम बात है। यह इस बात से भी साबित हो जाता है कि अक्सर रोज ही प्रदेश में कोई न कोई पटवारी रिश्वत लेते ट्रेप होता भी देखा जा सकता है। ऐसे में मंत्री मंत्री जीतू पटवारी और फिर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कोई नई बात नहीं कही है। यह भी उल्लेखनीय है मामले को सम्मान से जोड़ कर देखा जा रहा है, जबकि वही सम्मान एक अरसे से ट्रेप होने पर रोज तार तार होते देखा जा रहा है। फिर क्या बजह है पटवारी हड़ताल के पीछे? एक पड़ताल -
मंत्री जीतू पटवारी तो पहले ही कह चुके हैं कि उन्होंने यह बात सबके लिए नहीं कही है, लेकिन उन्होंने यह बात अवश्य जोड़ दी है कि तब क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा? अब एक बार और सरकार कहेगी तो वह एक बार और माफी मांग लेंगे, लेकिन तब क्या पटवारी हड़ताल समाप्त कर देंगे? तो जानकारी मिल रही है, ऐसा नहीं है। असल मुद्दा कुछ और है। पटवारी संघ ने सम्मान के साथ अपनी पुरानी वेतन बढ़ाने की मांग भी जोड़ दी है। मतलब यह कि असल मुद्दा सम्मान का नहीं, पेट का है।
पटवारियों का कहना है कि सरकार को सत्तासीन कराने में हमने पूरी जान लगाई है, अब जब सरकार बने लंबा समय गुजर गया है, वह जैसा कि वेतनमान का वादा वचन पत्र में था, को पूरा नहीं करते हुए उलटे सरकार के कैबिनेट मंत्री और CM रहे वजनदार नेता खुले मंच से हमें रिश्वतखोर कह कर गाली दे रहे हैं।
हालांकि एक तरह से देखा जाए तो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का 'पटवारी नामांतरण बंटवारे के 5 तक माँगते हैं', जैसी टिप्पणी उनके अपने ही कद को छोटा करती है, क्योंकि आज प्रदेश में उनकी अपनी सरकार है। पटवारी रिश्वत लेते हैं या ले रहे हैं, यह कहना आपका काम नहीं है। आपका काम है वह रिश्वत न लें, ठीक से काम करें। आपका काम यह कतई नहीं है कि यह कह कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लें, अपना पल्ला झाड़ लें कि पटवारी बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करते।
क्योंकि यदि पटवारी बिना रिश्वत के कोई काम नहीं करते तो आपकी सरकार क्या कर रही है? ऐसे में क्या यह कहना गलत होगा कि सरकार पंगु है और क्या इसके पीछे यही बजह है कि वह खुद भ्रष्ट है। आपकी ही सरकार की एक मंत्री हाल में ही यह स्वीकार चुकी हैं कि ट्रांसफर में पैसा लगता है, तो आप बताइये पटवारी रिश्वत नहीं लेगा तो ट्रांसफर में पैसा देगा कहाँ से? बेहतर हो समस्या का ठीक ढंग से निपटारा किया जाए। जनता के साथ '..बिरबाई का भुरचन' जैसी बात नहीं होनी चाहिए।
लड़ाई सम्मान की नहीं, पेट की है
आम पटवारियों की अपनी इस बात में दम है कि 300 रुपये के पेट्रोल में एक माह तक कैसे वह रोज तहसील से हलके में और हलके से तहसील के चक्कर लगाएं? कैसे आये दिन सर्किट हाउस में मंत्रियों की आवभगत करें? कैसे उन्हें काजू-किशमिश, बादाम खिलाएं? ऐसे में संघ नेताओं पर आम पटवारियों का दबाब है कि भले ही एक विषय मंत्री माफी न मांगें, लेकिन सही वेतनमान लेकर ही वापिसी हो. मतलब साफ़ है लड़ाई सम्मान की नहीं, पेट की है. मंत्री जीतू पटवारी यहाँ तक कि दिग्विजय सिंह के भी माफी मांग लेने पर संघ हड़ताल वापिस ले लेता है तो यह संघ की हार के रूप में ही देखा जाएगा.
बता दें कि उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने राऊ विधानसभा क्षेत्र के रंगवासा में आयोजित ‘आपकी सरकार, आपके द्वार’ कार्यक्रम के दौरान पटवारियों को लेकर टिप्पणी की थी. उन्होंने मंच से कहा था कि 100 प्रतिशत पटवारी रिश्वत लेते हैं. हाथ जोड़ने के बाद अनुरोध करने पर भी ये काम करने के लिए नहीं मानते हैं. उन्होंने खुले मंच से अधिकारियों/कर्मचारियों को भी चेतावनी दी थी. इसके बाद एक कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी पटवारियों पर नामांतरण बंटवारे में लाखों की राशि माँगने का आरोप लगाया।