इंदौर। सरकार ने शिक्षा का अधिकार (Right to Education) कानून जरूर लागू कर दिया है, लेकिन निजी स्कूल संचालकों की चालाकी के कारण गरीबों की फजीहत कम होने का नाम नहीं ले रही है। इसके बावजूद शासन-प्रशासन इन पर कुछ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। ताजा मामला एमपी किड्स स्कूल (MP Kids School) का है, जिसकी हाल ही में मान्यता रद्द (Validation canceled) कर प्रशासन ने इसे सील कर दिया है।
बीच शिक्षा सत्र में स्कूल बंद होने से यहां फीस देकर पढ़ रहे संपन्न परिवार के बच्चों को तो स्कूल संचालक ने अपने दूसरे स्कूल में एडमिशन (School admission) दे दिया, मगर आरटीई (RTE) के तहत पढ़ रहे 47 बच्चों के लिए स्कूल के दरवाजे बंद हो चुके हैं। स्कूल संचालक ने इन बच्चों से स्कूल के पहचान-पत्र और बेल्ट आदि सामान भी छीन लिया। पीड़ित अभिभावक मंगलवार को कलेक्टर लोकेश जाटव से मिलने पहुंचे। अभिभावक सीमा सिंहास, सपना गोयल, अनिता सिसोदिया ने बताया कि यदि स्कूल की मान्यता खत्म हो गई है तो हमारे बच्चों को दूसरे निजी स्कूल या केंद्रीय विद्यालय में प्रवेश दिलवाएं।
सुमित्रा राठौर और ज्योति पंवार ने कहा कि बच्चे स्कूल जाते हैं तो उन्हें वापस भेज दिया जाता है। उनके पहचान पत्र (आईकार्ड) और बेल्ट छीन लिए। महेश वर्मा और धरमपाल चौहान ने कहा कि शिक्षा केंद्र के जिला परियोजना समन्वयक हमें कहते हैं कि सरकारी स्कूल में प्रवेश करवा लो। सरकारी स्कूल में तो हम ही प्रवेश दिला देंगे, फिर आरटीई का क्या मतलब? जब आरटीई में प्रवेश हुए थे तो हमसे तीन-चार स्कूलों के विकल्प फॉर्म में भरवाए गए थे। इनमें से हमें एमपी किड्स मिला लेकिन यह स्कूल बंद हो गया है तो हम क्या करें? स्कूल गलत तरीके से चल रहा था तो मान्यता रद्द करने की कार्रवाई पहले ही की जानी थी। हमने विकल्प के रूप में अन्य स्कूलों के नाम भी भरे थे, प्रशासन चाहे तो उन स्कूलों में हमारे बच्चों का प्रवेश करवा सकता है।
अब बीच सत्र में बच्चों का स्कूल छूटने से उनकी आगे की पढ़ाई पर असर पड़ेगा। जनसुनवाई में ज्ञापन देने के बाद कुछ अभिभावक कलेक्टर से भी मिले। कलेक्टर ने आश्वासन दिया कि बच्चों के साथ गलत नहीं होने देंगे। कोई रास्ता निकाला जाएगा जिससे उनकी आगे की पढ़ाई हो सके।