भोपाल। मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने प्रेसनोट जारी कहा कि माननीय श्रीमान संजय जी यादव साहब विधायक बारगी-96 जबलपुर द्वारा रखा गया "दशहरा दीपावली अवकाश अशासकीय संकल्प को विगत मानसून सत्र में सदन से पारित किया गया।" इस पर RTE के हवाले से कम शैक्षणिक दिनों के बहाने रोकने का कुत्सित प्रयास किया गया, इसका खुलासा मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ ने शैक्षणिक कैलेंडर के आधार पर तत्थ्यात्मक जानकारी अनुसार ईमेल से माननीय विधानसभा अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्यमंत्री जी एवं स्कूल शिक्षा मंत्री मप्र शासन भोपाल व आयुक्त लोक शिक्षण भोपाल किया जा चुका है, लेकिन अवकाश के संशोधित आदेश जारी करने के बजाय चालू सत्र में 28-सितम्बर सर्वपितृ अमावस्या व 02-अक्टूबर गांधी जयंती दो अवकाश खत्म कर दिये हैं।
इस सत्र में RTE के मुताबिक 220/200 के मुकाबले 240 कार्य दिवस हो रहे है । इसी प्रकार शिक्षकों को "पदनाम" देने का मामला सत्ताधारी दल के वचन पत्र शामिल हैं, इसे एक माह में लागू करना था; इसके विपरीत फाइल मंत्रालय से सरकार के गलियारों में थकी-हारी हालत में धूल फांक रही है। शिक्षकों से गैर शिक्षकीय कार्य (BLO) में लगाने वाले माननीय न्यायालय के फैसले, RTE के प्रावधानों व विभागीय आला अधिकारियों के दिशा-निर्देश के बावजूद जिलों में शिक्षकों द्वारा आंदोलन कर ज्ञापन दिये जा रहे है, लेकिन कार्रवाई पर अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है। विडम्बना है कि शिक्षकों को पढ़ाने नहीं देते परिणाम भी बेहतर चाहते है।
शिक्षा के गिरते स्तर के लिए शासन प्रशासन की नीतियां जवाबदार है, इसके लिए मैदानी शिक्षकों से सीधे संवाद कर रास्ता खोजा जा सकता है। इसी प्रकार दिनांक 25 अक्टूबर 2017 के आदेशानुसार शिक्षक संवर्ग को जुलाई 2014 से तीस वर्ष सेवाकाल पूर्ण होने पर तृतीय क्रमोन्नति वेतनमान देना है जिलों में आदेश या तो निकले नहीं है व निकल गये तो नियमितिकरण व एरियर में इसका पालन भी मंथर गति से भ्रष्टाचार का निवाले की जुगाली करते चल रहा है। अध्यापक संवर्ग के वेतननिर्धाण अंतहीन सिलसिला जिसकी कोई समय-सीमा नहीं है, सातवें वेतनमान जुलाई 2018 से व देय एरियर की द्वितीय किश्त का भुगतान मई माह होना था जो अटका, लटका व भटका दिखता है।
आदेशों का पालन अंतिम स्तर पर कराने में विभागीय आला अधिकारी चुप्पी साधे बैठे है, यहाँ कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए। कुल मिलाकर वर्तमान हालातों के चलते यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रदेश में लालफीताशाही व पटना में बाढ़ के बदबूदार पानी के आगे सब बेबस है।