नई दिल्ली। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट पर 3 अक्टूबर गुरुवार दोपहर कुछ लोग कफन पहन कर पहुंच गए और अपने अधिकारों की मांग करने लगे. प्रदर्शनकारियों का कहना था कि पूरे देश के कई बड़े प्राइवेट अस्पतालों में बड़े स्तर पर लापरवाही हो रही है. मुनाफाखोरी के चलते अस्पताल मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. उनसे बेवजह पैसे वसूले जा रहे हैं और पैसे न देने की स्थिति में परिवार को तंग किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली सरकार से भी मांग की कि वह राजधानी के प्राइवेट अस्पतालों में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के बनाए गए चार्टर को लागू करने का आदेश जारी करे.
प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे डॉक्टर अभाय शुक्ला का कहना है कि हर मरीज का यह हक है कि वह अपने इलाज के दौरान किसी भी जांच केंद्र से अपनी स्वास्थ्य जांच करवाए और किसी भी मेडिकल स्टोर से अपनी दवा खरीदे. इलाज के दौरान मरीज को दूसरे डॉक्टर से सलाह लेने से मना नहीं किया जा सकता. अस्पताल मरीजों को मुफ्त आपात चिकित्सा देने से मना नहीं कर सकते. मरीजों की जानकारी डिजिटल रखने के लिए उनकी लिखित सहमति होनी चाहिए. वहीं अस्पताल मरीजों को विशेष केंद्र या अपने स्टोर से दवाएं खरीदने के लिए कहते हैं. इससे मरीजों को दवाएं महंगी मिलती हैं. इसके अलावा वे किसी के भी शव को पैसा न मिलने की स्थिति में 'बंधक' नहीं बना सकते. इन मुद्दों से जुड़े नियम बनाए गए हैं, लेकिन इन कानूनों का जानकारी के अभाव में पालन नहीं हो रहा है.
प्रदर्शन में शामिल बसंत शर्मा ने बताया कि उनकी पत्नी को बुखार हुआ था. इलाज के लिए उन्होंने दिल्ली के एक बड़े अस्पताल से संपर्क किया. अस्पताल ने उन्हें गंभीर बीमारी से ग्रसित होने की गलत जानकारी दी और उनका बड़ा ऑपरेशन कर दिया गया. अस्पताल ने उन्हें दूसरे डॉक्टर से सलाह भी नहीं लेने दी. बाद में उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी को साधारण बुखार था और उन्हें ऑपरेशन की कोई आवश्यकता नहीं थी. यह मामला तीस हजारी कोर्ट में अभी लंबित है.