नई दिल्ली। मद्रास हाईकोर्ट ने एक याचिका को खारिज करते हुए बलात्कार के दोषी की सजा को बरकरार रखा है। निचली अदालत से बलात्कारी घोषित व्यक्ति ने फैसले के खिलाफ यह तर्क देते हुए याचिका दाखिल की थी कि लड़की के शरीर पर कोई चोट के निशान नहीं थे। अत: यह साबित नहीं होता कि लड़की यौन प्रताड़ना का शिकार हुई है। हाई कोर्ट ने वकील के इस तर्क को अपमानजनक बताते हुए कहा कि यौन प्रताड़ना के मामले में शरीर पर चोट के निशान जरूरी नहीं, यदि पीड़िता नाबालिग है।
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही, जिसमें एक अपराधी को 12 साल की मासूम लड़की को बहकाकर उसके साथ यौन संबंध बनाने के आरोप में IPC के तहत 10 साल के सश्रम कारावास और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (Pocso Law, 2012) के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।
जस्टिस एस वैद्यनाथन ने आरोपी के वकील के इस तर्क को खारिज कर दिया कि किसी भी शारीरिक हिंसा की स्थिति में जो व्यक्ति हिंसा का शिकार हुआ है, उसे शारीरिक चोट लगी होगी, जिसके अभाव में ये नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ित का यौन उत्पीड़न हुआ।
वकील द्वारा दिया गया तर्क अपमानजनक- जज
जज ने कहा, ‘यह आरोपियों के वकील द्वारा दिया गया एक बेहद अपमानजनक तर्क है, क्योंकि नाबालिग लड़की को यह भी नहीं पता था कि उसे क्यों खींचा जा रहा है और क्यों छुआ गया।’ ‘इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नाबालिग लड़की कोई विरोध नहीं कर सकती है और किसी भी तरह के विरोध के अभाव में स्वाभाविक रूप से शरीर पर चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं है।’
जज ने कहा कि सिर्फ शारीरिक चोट के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई अपराध हुआ ही नहीं, खासतौर से तब जबकि यह पता चला हो कि लड़की के कपड़ों पर वीर्य पाया गया है। पीड़ित लड़की की मां ने 27 मई 2016 को शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी प्रकाश ने 12 साल की लड़की को जबरन अपने घर ले गया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया।
निचली अदालत ने प्रकाश को दोषी ठहराया और आईपीसी के तहत 10 साल के सश्रम कारावास और पोक्सो कानून के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई।