लखनऊ। सपा से शुरू होकर बसपा, भाजपा और कांग्रेस होते हुए आजमगढ़ के दलबदलू नेता रमाकांत यादव एक बार फिर सपा में आ गए हैं। मजेदार बात तो यह है कि रमाकांत यादव जिस पार्टी में जब चाहें स्विच कर लेते हैं। दलबदलुओं को इंकार करने की नीति किसी पार्टी में नहीं है।
मुलायम सिंह यादव के पसीने निकाल दिए थे
कहते हैं कि रमाकांत यादव, आजमगढ़ का वह कद्दावर नेता जिसने 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को अपने प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का कैबिनेट और अपना पूरा कुनबा उतारने पर मजबूर कर दिया था।
राजनीतिक जीवन में छठवीं बार पाला बदला
रमाकांत ने अपने राजनीतिक जीवन में छठवीं बार पाला बदलते हुए उसी समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है। निर्दलीय से राजनैतिक सफर शुरू करने वाले रमाकांत प्रदेश की चारों प्रमुख पार्टियों में रहे हैं। उन्होंने सपा, बसपा, भाजपा होते हुए कांग्रेस तक पहुंचे और फिर उसी सपा में शामिल हो गए जिससे वह दो बार सांसद और 2 बार विधायक रहे।
4 बार विधायक, 4 बार सांसद रहे
रमाकांत की गिनती पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभावशाली दिग्गज नेताओं में होती है। रमाकांत यादव ने पहली बार बतौर निर्दलीय उम्मीदवार सन 1985 में आजमगढ़ के फूलपुर से विधानसभा चुनाव जीता था। तब से अब तक, लगभग 34 वर्ष की राजनीतिक यात्रा में रमाकांत चार बार विधायक और चार बार ही सांसद रहे हैं।
कब-कब रहे विधायक सांसद
रमाकांत यादव सन 1989 में दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर आजमगढ़ जिले के फूलपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
इसके बाद वह सपा में शामिल हो गए और 1991 और 1993 में भी निर्वाचित होकर विधानसभा पहुंचे।
बाहुबली रमाकांत जल्द ही सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के करीबियों में शुमार हो गए।
सपा ने 1996 के लोकसभा चुनाव में उन्हें आजमगढ़ लोकसभा सीट से मैदान में उतार दिया।
रमाकांत ने आजमगढ़ में सपा का परचम लहरा दिया. 1999 में वह फिर से चुनाव जीत गए।
2004 में सपा की साइकिल से उतर कर रमाकांत ने हाथी की सवारी करते हुए जीत दर्ज की।
2009 के चुनाव में वह भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते। 2014 की मोदी लहर में रमाकांत को मुलायम सिंह यादव ने हराया।
2019 में भाजपा से टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस के टिकट पर भदोही से चुनाव लड़े लेकिन करारी मात खानी पड़ी।
भाई की गिरफ्तारी पर छोड़ी थी बसपा
रमाकांत यादव के भाई उमाकांत यादव जौनपुर की खुटहन सीट से विधायक थे। उनके खिलाफ आजमगढ़ जिले में एक घर पर जबरन कब्जा करने का आरोप था। 2007 में बसपा अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने उमाकांत को मिलने के लिए बुलाकर अपने आवास के बाहर गिरफ्तार करा दिया था। इसके बाद रमाकांत ने बसपा छोड़ दी थी। माया के साथ संबंधों में किस कदर तल्खी थी, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान जब अमित शाह ने आजमगढ़ को आतंकिस्तान की धरती बताया तो पलटवार करते हुए मायावती ने तब भाजपा उम्मीदवार रहे रमाकांत को ही सबसे बड़ा आतंकी बता डाला था।
योगी आदित्यनाथ के करीबियों में होती थी गिनती
रमाकांत यादव की गिनती उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबियों में होती थी। हालांकि योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों के रिश्तों में खाई बढ़ती गई। फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में हार के बाद रमाकांत ने योगी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
रमाकांत ने हार के लिए सीधे-सीधे योगी और प्रदेश संगठन को जिम्मेदार बताते हुए कहा था कि योगी आदित्यनाथ सबको साथ लेकर चलने में विफल रहे हैं। उन्होंने सीएम योगी पर एक जाति विशेष को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया था। योगी आदित्यनाथ के साथ संबंधों में दूरी राजनाथ सिंह द्वारा 2016 में दिए गए उस बयान से शुरू हुई थी, जिसमें उन्होंने कोटे के अंदर कोटा की बात की थी। रमाकांत ने राजनाथ के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए स्वयं और योगी आदित्यनाथ को मोर्चा संभालने की बात कही थी। योगी आदित्यनाथ को सफाई देनी पड़ी थी कि वह रमाकांत नहीं, पार्टी की लाइन पर रहेंगे।