नई दिल्ली। नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) ने स्कूलों को सलाह दी है कि लंच ब्रेक के दौरान स्कूलों में बच्चों की उम्र के अनुसार गाने बजाए जाएं। अगर जरूरत महसूस हो, तो कक्षा में पढ़ाई के दौरान भी ऐसा किया जाए। ऐसा करने से बच्चों में सकारात्मक और आनंदमय वातावरण पैदा होगा और उनका उत्साह बढ़ेगा।
आर्ट इंटीग्रेटेड लर्निंग के लिए जारी दिशा निर्देशों में एनसीईआरटी ने कहा है कि रिसर्च से पता चला है कि संगीत बच्चों में बेहतर ग्रहणशीलता लाता है। यह शांति की भावना विकसित करने में भी मदद करता है। यह दिशा निर्देश 34 नगर निगम स्कूलों में किए गए एक साल के अध्ययन के आधार पर तैयार किए गए हैं। पहली से 8वीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं के लिए तैयार की गई गाइड लाइन प्रायाेगिक तौर पर मध्यप्रदेश के इछावर में शुरू की गई है।इसके अच्छे नतीजे भी सामने आए हैं।
यह पहल देशभर के स्कूलों में अमल में लाई जाएगी
इस महीने के अंत तक यह व्यवस्था देशभर के स्कूलों में अमल में लाई जाएगी। इसके लिए शिक्षकों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। यह दिशा-निर्देश जामिया मिलिया इस्लामिया के साथ मिलकर शिक्षकों की एक टीम द्वारा बनाए गए हैं। यहीं प्रयोग के तौर पर इस प्रोजेक्ट की सालभर स्टडी की गई।इसके अलावा, काउंसिल ने प्री-प्राइमरी में आर्ट की टीचिंग, एक्टिविटीज की प्लानिंग, टाइम और रिसोर्सेस की प्लानिंग, क्लासरूम मैनेजमेंट और कम्युनिटी इन्वॉल्वमेंट के लिए अलग-अलग दिशा-निर्देशों की रूपरेखा तैयार की है। एनसीईआरटी के डायरेक्टर प्रो. ऋषिकेश सेनापति ने कहा कि इस निर्णय से बच्चों का पढ़ाई की ओर रुझान और शिक्षकों के साथ सामंजस्य भी बढ़ेगा। ड्रॉपआउट कम होंगे। इससे वे एक अच्छे नागरिक बनने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। कला सीखने के लिए बच्चों को बिना किसी डर के कोई भी एक्टिविटी करने देना चाहिए। बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव नहीं डालना चाहिए।
आर्ट टीचर्स से कहा- बच्चों की कलात्मक क्षमता पर टिप्पणी न की जाए :एनसीईआरटी ने स्कूलों में आर्ट टीचर्स के लिए कई सुझाव भी दिए हैं। इनके मुताबिक शिक्षक बच्चों की कलात्मक क्षमता पर टिप्पणी न करें। उनके आर्ट वर्क की तुलना दूसरे बच्चों से न करें। वे प्रोसेस का आकलन करें न कि प्रोडक्ट का। आर्ट को सब्जेक्ट के बजाए टूल के रूप में इस्तेमाल करें। इससे उनका उत्साह ज्यादा बढ़ेगा।