भोपाल। आरटीआई कमिश्नर राहुल सिंह ने रीवा पुलिस को लताड़ लगाते हुए पत्रकार संजय रैकवार को उनके खिलाफ दर्ज हुए मामले की जांच रिपोर्ट की प्रमाणित प्रतिलिपि प्रदान करने के आदेश दिए हैं। इस मामले में पुलिस का कहना था कि जांच रिपोर्ट की कॉपी उपलब्ध कराने से आरोपी अभियोजन को प्रभावित कर सकता है। आरटीआई कमिश्नर ने पुलिस के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि सिर्फ यह कह देने भर से काम नहीं चलेगा कि आरोपी अभियोजन को प्रभावित कर सकता है, पुलिस बंद लिफाफे में जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करें और यह प्रमाणित करें कि किस तरह आरोपी अभियोजन को प्रभावित कर पाएगा।
आरटीआई कमिश्नर राहुल सिंह ने डीआईजी रीवा को पाबंद किया है कि वह सुनिश्चित करें कि आवेदक को मांगी गई जानकारी उपलब्ध हो। पुलिस ने इस मामले में सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 81 H (ज) का लाभ उठाते हुए जानकारी देने से इनकार कर दिया था।पत्रकार संजय रैकवार " सागर के मोती" नाम के अखबार में संपादक है।
मामला 2015 का है, पत्रकार संजय रैकवार के खिलाफ आईपीसी की धारा 384 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। पत्रकार संजय रैकवार का दावा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ खबरें छापने के कारण उनके खिलाफ एक साजिश के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया है। पत्रकार का यह भी दावा है कि जब उसने वरिष्ठ अधिकारियों को सच्चाई बताई तो उन्होंने इस मामले की जांच कराई और जांच रिपोर्ट उसके पक्ष में थी परंतु पुलिस ने जब चालान पेश किया तो उसमें जांच रिपोर्ट नहीं थी।
पुलिस के तर्क को नकारते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह कहा कि "अभियोजन प्रभावित होगा कहने मात्र से जानकारी नहीं छुपाई जा सकती है पुलिस को साबित करना होगा की जानकारी सामने आने से अभियोजन किस तरह से प्रभावित हो सकता है। सूचना आयुक्त ने अपने फैसले में ये भी कहा कि अगर इस प्रकरण में जांच पूरी हो चुकी है और किसी व्यक्ति की गिरफ़्तारी या उसके ख़िलाफ़ कोई मुकदमा दर्ज़ होना बाकी ना रहा हो तो जानकारी को छुपाया नहीं जा सकता है।
पुलिस से जांच रिपोर्ट तलब करते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि "इस प्रकरण मैं जो तथ्य रिकॉर्ड पर हैं वो अगर सच है तो उन्हें न्यायहित मे सामने लाना चाहिए। वही धारा 81 h जांच की प्रक्रिया से संबंधित है पर न्यायलय में विचाराधीन मामले में पुलिस को अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा। मात्र धारा का उल्लेख करने से जानकारी नही छुपाई जा सकती।"