क्या आप बता सकते हैं, दुनिया में सबसे ऊँची हिंदू देवता की प्रतिमा कहां और किसकी है। हम आपको बताते हैं कि यह भारत में नहीं हैं, हिंदू राष्ट्र कहे जाने वाले नेपाल में भी नहीं है बल्कि यह इस्लामिक राष्ट्र इंडोनेशिया में स्थित है।
इस्लामिक राष्ट्र इंडोनेशिया के बाली शहर में गरूड़ व विष्णु के 393 फुट ऊँची प्रतिमा स्थापित है। आप जानकर चौंक जाएंगे कि इसे बनाने में 25 साल का समय लगा है। यह विश्व का दूसरा सबसे ऊँचा धार्मिक प्रतीक है। 393 फ़ीट ऊँची ये मूर्ति स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी से 90 फ़ीट ऊँची है। विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति चीन में है। बुद्ध की ये मूर्ति 420 फ़ीट ऊँची है।
1979 में इंडोनेशिया के मूर्तिकार ने एक स्वप्न देखा था। मूर्तिकार बप्पा न्यूमन नुआर्ता इंडोनेशिया में हिन्दू प्रतीक की विशालकाय मूर्ति बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले कम्पनी स्थापित की। मूर्ति की डिजाइन पर अथक परिश्रम किया। धन जुटाने के लिए देशभर की यात्रा की। मूर्ति तांबा और पीतल की बनाई जानी थी इसलिए धन की बहुत आवश्यकता थी। 1994 में काम शुरू हुआ। कई बार धन की कमी के कारण काम बीच-बीच में महीनों रुका रहता लेकिन न्यूमन की इच्छाशक्ति बड़ी प्रबल थी। वे नहीं रुके। लगभग एक दशक बाद दुनिया न्यूमन और उनके इस स्वप्न को बिसरा चुकी थी।
विष्णु की मूर्ति स्थापित करने के पीछे विचार ये था कि इंडोनेशिया के सबसे प्राचीन धर्म और संस्कृति को वहां के शिल्प में ढाला जाए। इंडोनेशिया में यूँ तो बुद्धिज्म और इस्लाम धर्म के अनुयायी भी रहते हैं लेकिन हिन्दू धर्म तो प्राचीन काल से यहाँ प्रचलित रहा है। जिस बाली द्वीप में इस मूर्ति को स्थापित किया गया, वहां की 83 प्रतिशत जनसँख्या हिन्दू धर्म का पालन कर रही है। इस मूर्ति को लेकर वहां की सरकार बहुत उत्साहित है। गरुड़ विष्णु केनकाना मूर्ति को इंडोनेशिया सरकार ने देश की प्रतिनिधि कृति का दर्जा दे दिया है।
गरुड़ विष्णु केनकाना: गरुड़ के पंख ही साठ मीटर
गरुड़ विष्णु केनकाना कल्चरल पार्क में इस मूर्ति को स्थापित किया गया है। इस पर पिछले पच्चीस साल में लगभग सौ मिलियन डॉलर खर्च हो चुके हैं। पहले गरुड़ की मूर्ति बनाई गई। मूर्ति के ऊपर विष्णु को विराजित करने के लिए एक आसन बनाया जा रहा है। साठ मीटर चौड़े इस आसन पर विष्णु विराजमान हैं। लिबर्टी की मूर्ति के मुकाबले ये मूर्ति अधिक चौड़ी है। गरुड़ के पंख ही साठ मीटर के बनाए गए हैं। इसे इस तरह बनाया गया है कि अगले सौ साल में भी इसकी चमक और मजबूती बरक़रार रह सके। इसके अलावा एक ‘विंड टनल टेस्ट’ भी करवाया गया। इससे पता चला कि तूफानी हवाओं को ये मूर्ति झेल सकेगी या नहीं।
चार हज़ार टन तांबा, पीतल और स्टील का उपयोग
मूर्ति बनाने के लिए चार हज़ार टन तांबा, पीतल और स्टील का उपयोग किया गया है। इसे मजबूती देने के लिए कांक्रीट की परत लगाई गई है। मूर्ति जावा में तैयार की गई और उसे एक हज़ार किमी दूर ट्रकों पर लादकर ले जाया गया था।
मूर्तिकार बप्पा न्यूमन नुआर्ता को भारत ने ‘पद्मश्री’ से नवाज़ा
बप्पा न्यूमन नुआर्ता को उनके इस महान कार्य के लिए भले ही विश्व के किसी और देश ने नहीं सराहा हो लेकिन भारत ने उनके पच्चीस साल के परिश्रम के लिए उनका सम्मान किया है। इस साल जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पुरस्कार वितरित कर रहे थे तो एक नाम न्यूमन का भी था। उन्हें भारत के गरिमामयी सम्मान ‘पद्मश्री’ से नवाज़ा गया। भारत ने उनके इस कार्य के लिए उन्हें पहले ही सम्मानित कर दिया है।