नई दिल्ली। पाकिस्तान में सियासी हलचल तेज हो गई है। आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने हाल ही में देश के प्रमुख कारोबारियों से गुप्त मुलाकात की। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सेना प्रमुख और कारोबारियों के बीच यह तीसरी मीटिंग थी। माना जा रहा है कि कमर जावेद बाजवा पाकिस्तान में तख्ता पलट के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। वो इमरान खान सरकार को हटाकर 'तानाशाह सरकार' की स्थापना करना चाहते हैं।
यह तख्तापलट करने का नर्म तरीका है: यूसुफ नजर
बताया जा रहा है कि कमर जावेद बाजवा की सभी मीटिंगों के दौरान सुरक्षा और गोपनीयता का खास ख्याल रखा गया। यही कारण है कि मीटिंग में लिए गए फैसलों की जानकारी नहीं मिल सकी। दूसरी तरफ, सिटी बैंक के पूर्व अधिकारी, लेखक और बैंकर यूसुफ नजर ने मीटिंग पर तल्ख टिप्पणी की। कहा, “यह तख्तापलट करने का नर्म तरीका है, इसके अलावा कुछ नहीं।”
पहले भी सैन्य शासन कायम किया जा चुका है
सिटी बैंक के पूर्व अफसर, बैंकर और लेखक सेना प्रमुख के कदम को तख्तापलट की साजिश के तौर पर देखते हैं। उनके मुताबिक, यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में दखल है। सेना का काम मुल्क की हिफाजत से आगे नहीं होना चाहिए। पाकिस्तान पहले ही कई बार सैन्य शासन से गुजर चुका है। बाजवा का नया कदम तख्तापलट की तरफ उठाया गया नर्म कदम है। इससे ज्यादा कुछ नहीं। इसके बेहद गंभीर परिणाम होंगे।
सैन्य मुख्यालय में अर्थव्यवस्था पर चर्चा
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, बाजवा और प्रमुख कारोबारियों के बीच यह इस साल की तीसरी बैठक थी। यह तीनों बैठकें कराची और रावलपिंडी के सैन्य मुख्यालयों में हुईं। इस दौरान सुरक्षा और गोपनीयता की जिम्मेदारी भी सेना ने ही संभाली। लिहाजा, मीटिंग की ज्यादा जानकारी मीडिया तक नहीं पहुंची।
आर्थिक हालात सुधारें
10 साल में यह पहला मौका है, जब केंद्रीय बजट में सेना का कोटा नहीं बढ़ाया गया। इससे बाजवा की फौज खफा बताई जाती है। मीटिंग की बहुत कम बातें सामने आई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, बाजवा ने कारोबारियों से कहा कि वो अर्थव्यवस्था सुधारने के उपाय बताएं, ज्यादा निवेश करें। कारोबारियों के सुझावों को फौरन संबंधित अधिकारियों और मंत्रालयों तक पहुंचाया गया। इन पर अमल के आदेश भी दिए गए। सेना ने इस मामले पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
इमरान खान को अर्थ व्यवस्था का अनुभव नहीं है
रिपोर्ट के मुताबिक, सेना पहले ही पाकिस्तान में कई तरह के कारोबार चला रही है। इमरान खान उसकी मदद से ही प्रधानमंत्री बने हैं। उन्हें अर्थ व्यवस्था और अर्थ तंत्र का अनुभव नहीं है। इसलिए सेना ने खुद कमान संभाली है, क्योंकि उसके सामने खुद दिक्कतें हैं। भारत और अफगानिस्तान के बाद अब ईरान सीमा पर भी संकट है।
पाकिस्तान मेें बडा जन आंदोलन की संभावनाएं
वर्तमान में पाकिस्तान की विकास दर सिर्फ 2% है। यह सरकारी आंकड़ा है। विशेषज्ञ इसे भी सही नहीं मानते। बजट घाटा 8.9% हो चुका है। यह 30 साल में सर्वाधिक है। नेस्ले और टोयाटा जैसी कंपनियां कारोबार समेटने की कोशिश कर रही हैं। एफएटीफ ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में रखा है, यहां वो नवंबर में ब्लैक लिस्ट भी हो सकता है। आईएमएफ ने उसे 6 बिलियन डॉलर के कर्ज पर रजामंदी तो दी है, लेकिन बेहद कड़ी शर्तों पर। इसकी पहली किश्त का कुछ ही हिस्सा इमरान सरकार को मिला है। शर्तें पूरी नहीं हुईं तो कर्ज अटक जाएगा। और अगर पूरी की गईं तो अवाम के सड़कों पर उतरने का खतरा है।