भोपाल। कमलनाथ सरकार ने भू राजस्व संहिता की धारा 165 व 172 में संशोधन कर, ग़ैर आदिवासी द्वारा भूमि क्रय अनुमति द्वारा प्राप्त कृषि भूमि के उपभोग परिवर्तन की समय सीमा की दस वर्ष की बाध्यता को ख़त्म कर दिया है। ये निर्णय केबिनेट में पास हुआ है। जिससे जनजाति समाज में व्यापक आक्रोश है।
म.प्र.जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा नेता नरेन्द्र सिंह मरावी इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए कमलनाथ सरकार पर जनजाति समाज के साथ अन्याय करने का आरोप लगाया है।उन्होंने कहा कि यह संशोधन संविधान की पाँचवीं अनुसूची के पेरा 5 (2) (a) का उल्लंघन है, जो ऐसे किसी भी निर्णय जो जनजाति भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करता है, जो अनुसूचित क्षेत्र में अथवा जनजाति भूमि है। इस निर्णय को छिंदवाडा व अन्य जगहों में अवैध रूप से क़ब्ज़ाई गई भूमि को वैध करने का प्रयास माना जाना चाहिए।
जनजातियों की ज़मीन पर गिद्ध की नज़र गड़ाए, भू माफ़िया को जबरन क़ब्ज़े का प्रशासनिक अधिकार प्रदान करेगा, जिसमें प्रशासन की संलिप्तता को नज़र अन्दाज़ नहीं किया जा सकता। नरेन्द्र सिंह मरावी ने यह भी कहा कि वर्तमान सरकार में गृह मंत्री , शिक्षा मंत्री व आदिवासी मंत्री इस निर्णय के वक्त क्या आँखो पर पट्टी बांधकर बैठे थे ? अगर मध्यप्रदेश में सत्ताधारी पार्टी के जनजाति विधायकों में जनजातियों के प्रति तिनका मात्र भी नैतिक ज़िम्मेदारी है , तो त्वरित इस निर्णय के विरोध में पत्र लिखें , दस दिन तक निर्णय वापस ना हो तो त्यागपत्र दें।
निर्णय के विरोध में लेंगे न्यायालय की शरण
पूर्व जनजाति आयोग अध्यक्ष ने कहा कि कमलनाथ सरकार के इस जनजाति विरोधी निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के तहत रिट दायर की जाएगी तथा महामहिम राज्यपाल से मिलकर इस निर्णय को तत्काल प्रभाव निरस्त करने की अधिसूचना व उसकी सूचना राष्ट्रपति महोदय को भेजने की माँग करेंगे। अगर मध्यप्रदेश सरकार इस निर्णय को वापिस नहीं लेगी तो सड़क से संसद तक विरोध को तैयार रहे। किसी भी जनजाति की ज़मीन के एक इंच भी अवैध हस्तांतरण को होने नहीं देंगे।