भोपाल। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में केंद्र सरकार के रुख के कारण मध्यप्रदेश सरकार पर सिर्फ मजदूरी के 274 करोड़ रुपए की उधारी चढ़ गई है। भुगतान के लिए मात्र 63 लाख रुपए बचे हैं। इसी तरह सामग्री के 337 करोड़ रुपए चुकाने हैं, लेकिन राशि ही नहीं है। दूसरी योजनाओं से 350 करोड़ रुपए उधार लेकर जैसे-तैसे काम चलाया गया, लेकिन अब यह राशि लौटानी है। इसके लिए तत्काल एक हजार करोड़ रुपए की दरकार है।
यह बात पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल ने बुधवार को नई दिल्ली में केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकाय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ मुलाकात में कही। बैठक में पटेल ने कहा कि छह पत्र मनरेगा की राशि नहीं मिलने को लेकर लिखे जा चुके हैं, लेकिन कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला है। वर्ष 2019-20 में मजदूरी के लिए 2441 करोड़ रुपए स्वीकृत हैं।
स्वीकृत राशि में से मजदूरी के लिए सिर्फ 63 लाख रुपए बचे हैं। लंबित 274 करोड़ 20 लाख रुपए की मजूदरी चुकाने के लिए अक्टूबर और नवंबर में चार पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन राशि नहीं मिली। सामग्री के लिए 860 करोड़ 76 लाख रुपए स्वीकृत हैं। पिछले साल के करीब 35 करोड़ रुपए का भुगतान अभी तक नहीं हुआ है। इस साल के 302 करोड़ 74 लाख रुपए के भुगतान लंबित हैं। इसके लिए 21 सिंतबर को पत्र लिखकर 570 करोड़ 44 लाख रुपए मांगे गए थे। इसके विरुद्ध 127 करोड़ 77 लाख रुपए ही दिए गए। लंबित भुगतान के लिए अन्य योजना से 350 करोड़ रुपए उधार लेकर जैसे-तैसे काम चलाया गया। लगभग सौ करोड़ रुपए दूसरी योजनाओं का तत्काल वापस करना है। इसके मद्देनजर उन्होंने केंद्रीय मंत्री से तत्काल एक हजार करोड़ रुपए आवंटित करने की मांग की।
राशि की कमी से पलायन के हालत बनते हैं
पटेल ने केंद्रीय मंत्री से कहा कि पिछले साल भी योजना में राशि की कमी हुई थी। प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिलों में बड़ी संख्या में अब मजदूरी की मांग आएगी। पर्याप्त राशि नहीं मिलने से काम प्रभावित होते हैं और पलायन की स्थिति बनती है, जो योजना की भावना के खिलाफ है।