भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के नए नियमों के अनुसार जिला अध्यक्षों का चुनाव किया जाना है। छोटे जिले के लोग तो बड़े नेताओं की बात मान लेते हैं लेकिन बड़े शहरों में बड़े नेताओं की भी बात नहीं बनती। इंदौर में ताई-भाई एक बार फिर दंगल में नजर आएंगे लेकिन भोपाल के हालात इंदौर से भी ज्यादा खराब है। एक तरफ शिवराज सिंह गुट हावी है तो दूसरी तरफ कई नेता अपनी जुगाड़ लगाने में लगे हुए हैं।
विकास वीरानी की अनुकंपा नियुक्ति समाप्त होगी
भोपाल भाजपा के लोग कहते हैं कि शिवराज सिंह ने विकास वीरानी को जिला अध्यक्ष के पद पर अनुकंपा नियुक्ति दी थी। यह संविदा नियुक्ति थी जो समाप्त होने वाली है। विकास वीरानी को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलेगा क्योंकि उनका पहला कार्यकाल ही सफलतम नहीं कहा जा सकता। वह अपनी पहचान बनाने में नाकाम साबित हुए।
कई दिग्गज हैं रेस में
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के जिला अध्यक्ष पद के लिए कई दिग्गज नेता रेस में है। महापौर आलोक शर्मा फिर से जिलाध्यक्ष बनना चाहते हैं। उन्हें शिवराज सिंह पर भरोसा है। पूर्व मंत्री विश्वास सारंग को कमलनाथ पर भरोसा है कि वह 5 साल सरकार चलाएंगे अतः सारंग भी रेस में दौड़ रहे हैं। बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर विधायक तो है लेकिन जिलाध्यक्ष भी बनना चाहती है। इससे ना केवल संगठन में पकड़ मजबूत होगी बल्कि एक पहचान भी बनेगी। बाबूलाल जी के बाद कृष्णा गौर इसकी बहुत जरूरत है।
भगवान दास सबनानी को उम्मीद है कि सिंधी कोटे से उन्हें मुख्यधारा में लाया जाएगा। विकास वीरानी को हटाने के बाद सिंधियों को मनाने के लिए भगवानदास सबनानी खुद को एक विकल्प बता रहे हैं। भाजपा की नई नीतियों के कारण जगदीश यादव, अनिल अग्रवाल, रविंद्र यति और लिली को भरोसा है कि उनकी लॉटरी भी लग सकती है। संभावनाएं भले ही कम हो लेकिन जोरपुरा लगाया जा रहा है। आलोक संजर को लोकसभा टिकट और विकास विरानी की नियुक्ति के बाद भोपाल में एक विश्वास कायम हो गया है कि लास्ट मिनट में कुछ भी हो सकता है।
गुट तो प्रज्ञा सिंह ठाकुर का भी है
लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी भिंड कि नहीं भोपाल की नेता हो गई है। यहां उनका भी अपना गुट है। प्रज्ञा सिंह ठाकुर के समर्थक चाहते हैं कि भोपाल में भाजपा का जिला अध्यक्ष उनकी पसंद का हो। कुछ नाम भी है जो सुर्खियों में तो नहीं आए लेकिन चर्चाओं में लाने की कोशिश की जा रही है।
सुरेंद्र नाथ सिंह को चाहिए एक और मौका
विधानसभा चुनाव हार चुके भाजपा के धाकड़ नेता सुरेंद्र नाथ सिंह को दूसरे मौके की तलाश है। सुरेंद्र नाथ सिंह अकेले भाजपा के ऐसे नेता है जो अपने दम पर विरोध प्रदर्शन और कार्यक्रम करते रहते हैं। गुमटी मामले में वह थोड़ा पक्षपाती जरूर हो गए थे लेकिन यदि राजधानी में भाजपा को सरकार के खिलाफ प्रदर्शन और संघर्ष देखना है तो सुरेंद्र नाथ सिंह का कोई विकल्प नहीं।