नई दिल्ली। उत्तराखंड की नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के लिए दाखिल की गई है याचिका को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने एक बार फिर राज्य सरकार से आरक्षण के आंकड़े मांगे हैं। एससी-एसटी इम्प्लाइज यूनियन की ओर से यह याचिका दाखिल की गई थी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है। 10 दिसंबर को इसकी सुनवाई होनी है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार एससी-एसटी इम्प्लाइज यूनियन, चंद्र प्रकाश, नंद किशोर सहित अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरक्षित कोटे के कार्मिंकों को पदोन्नति में आरक्षण देने की मांग की थी।
पूर्व में पदोन्नति में आरक्षण का मामला कोर्ट पहुंचने के बाद उत्तराखंड में तमाम सरकारी महकमों ने पहली अप्रैल 2019 से ही पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी थी। इसके बाद सितंबर में सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण खत्म कर पदोन्नति प्रक्रिया रोक दी थी। एससी-एसटी फेडरेशन तथा सामान्य वर्ग के प्रतिनिधियों के दखल के बाद मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में आरक्षण के लिए आंकड़े मांगे थे
बता दें कि वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि सरकार पदोन्नति में आरक्षण तब दे जब वह आंकड़े जुटा ले कि किस जाति के कितने लोग वंचित हैं। वंचित वर्गों का प्रतिनिधित्व कितना है और कितने पद रिक्त हैं। इसके बाद भी पदोन्नति में आरक्षण जारी रहने पर मामला पुन: कोर्ट पहुंचा था। तब कोर्ट ने 2011 में 1994 का यूपी का आरक्षण संबंधी एक्ट निरस्त कर दिया था।
प्रमोशन में आरक्षण: क्या है ज्ञानचंद प्रकरण
बाद में ज्ञानचंद प्रकरण में हाईकोर्ट ने आरक्षण दिए जाने को कहा था, जिसमें सरकार ने रिव्यू पिटिशन डाली थी। इस पर हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश की तर्ज पर चार माह में आंकड़े जुटाकर निर्णय लेने को कहा था। इसी क्रम में हाईकोर्ट ने अन्य संबंधित याचिकाओं पर भी ज्ञानचंद मामले में दिए गए निर्णय के अनुसार ही तथ्य जुटाकर कार्रवाई करने को कहा है। इस निर्णय के बाद अब सरकार इस मामले में निर्णय लेने को स्वतंत्र हो गई है। हांलाकि सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले में 10 दिसंबर को सुनवाई होनी है।