भारत में फांसी देने की परंपरा बहुत पुरानी है। अंग्रेजी शासनकाल में अपराधियों को फांसी देने की सजा को विधिवत किया गया। इसके बाद फांसी देने के कुछ नियम भी बनाए गए। अपराधी में भले ही कितना भी जघन्य अपराध किया हो परंतु जिस दिन उसे फांसी दी जाती है उस दिन उसके साथ अपराधियों की तरह व्यवहार नहीं किया जाता। प्रात सूर्योदय से पहले स्नान इत्यादि कराने से लेकर फांसी के फंदे पर लाने तक सभी लोग अपराधी के प्रति सद्भावना प्रकट करते हैं।
फांसी से पहले जल्लाद अपराधी के स्थान में क्या कहता है
भारत देश में जब किसी अपराधी को फांसी दी जाती है तो उस समय जल्लाद अपराधी के कान में फांसी देने से पहले कुछ कहता है और इसके बाद ही अपराधी को फांसी दी जाती है। अपराधी के गले में फांसी का फंदा लगाने के बाद जल्लाद उसके कान के पास जाकर क्षमा याचना करता है एवं बताता है कि यह सब कार्य वह राज आज्ञा से कर रहा है। ऐसा करने के लिए वह बाध्य है। अपराधी यदि हिंदू होता है तो "राम-राम" और मुसलमान होता है तो "सलाम" बोलता है। इसके बाद ही अपराधी को फांसी पर लटकाया जाता है। दरअसल यह परंपरा जल्लादों ने शुरू की जिसे सरकार उन्हें स्वीकृति प्रदान कर दी। इस तरह से जल्लाद मनुष्य की हत्या के पाप से मुक्त होते हैं।
किस तरह के अपराधियों को फांसी की सजा दी जाती है
फांसी की सजा सामान्यतः हत्या के अपराधियों को दी जाती है। ऐसे अपराधी जिन्होंने जघन्य हत्या कांड किया हो एवं उनका अपराध किसी भी प्रकार की क्षमा का योग्य ना हो तब न्यायालय अपराधी को फांसी की सजा सुनाता है। सामान्य अपराधों के मामले में यदि अपराधी न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील नहीं करता तो उसे निर्धारित सजा भोगनी पड़ती है परंतु जैसा अपराधी को सजा-ए-मौत सुनाई जाती है उसे अपील का अनिवार्य अधिकार दिया जाता है। यदि वह निर्धन है तो सरकार की तरफ से वकील उपलब्ध कराया जाता है। इसके पीछे मंच आया है कि यदि व्यक्ति किसी साजिश का शिकार हो गया है या किसी चूक के कारण उसे सजा-ए-मौत सुना दी गई है तो सजा पर अमल किए जाने से पहले उसे ठीक किया जा सके।
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