सेंट्रल डेस्क (राजनीतिक मामलों के लिए)। महाराष्ट्र में जबकि राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था, रात 12:30 बजे भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस एवं एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार राज्यपाल से मिलने पहुंचे और सरकार बनाने का दावा किया। सुबह 7:00 बजे राज्यपाल ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। प्रश्न यह है कि जब महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा था तो कैबिनेट की मंजूरी के बिना राष्ट्रपति शासन कैसे हटा दिया गया। आइए जानते हैं कानून इस बारे में क्या कहता है:
भारत सरकार (कार्य-संचालन) नियम के तहत राष्ट्रपति शासन हटाया गया
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी नहीं ली गई। इसका निर्णय प्रधानमंत्री ने स्वयं लिया। भारत सरकार (कार्य-संचालन) नियम (THE GOVERNMENT OF INDIA TRANSACTION OF BUSINESS RULES) के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 77 की तीसरी उपधारा के मुताबिक सरकार के कामकाज को बिना बाधा के चलाने के लिए राष्ट्रपति ने कुछ नियम बनाए थे।
आधी रात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विशेष पावर का उपयोग किया
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा ये नियम 4 जनवरी, 1961 को लागू किए गए थे। इन्हीं नियमों में 12वें नियम के मुताबिक प्रधानमंत्री (PM) किसी भी मामले या किसी भी वर्ग के मामले में अनुमति दे सकता है या नियमों से प्रस्थान कर सकता है। वह जिस हद तक इसे जरूरी समझता है (उस हद तक नियमों से प्रस्थान कर सकता है)। इसी का प्रयोग करते हुए महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन हटाया गया। सरल शब्दों में कहें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वीटो पावर का यूज किया है।
क्या महाराष्ट्र के राज्यपाल के निर्णय को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है
इस मामले में संविधान विशेषज्ञ (Constitution Specialist) पीडीटी आचार्य का कहना है कि किसे मुख्यमंत्री नियुक्त करना है यह राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करता है वह अगर संतुष्ट हैं तो वह मुख्यमंत्री नियुक्त कर सकते हैं। आमतौर पर राज्यपाल विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठी से बहुमत का फैसला करते हैं लेकिन यह कोई अनिवार्य शर्त नहीं है। राज्यपाल द्वारा अपने विवेक से लिए गए निर्णय को किसी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ, बहुमत का परीक्षण कैसे होगा
इन सभी विधायकों पर एंटी डिफेक्शन लॉ (Anti-Defection Law) लागू होगा लेकिन उसके बारे में फैसला विधानसभा स्पीकर को करना होता है तो यह महत्वपूर्ण होगा कि विधान सभा स्पीकर कौन होंगे। प्रोटेम स्पीकर के पास स्पीकर के सभी अधिकार होते हैं इसलिए अगर वह चाहें तो बहुमत परीक्षण भी करवा सकते हैं, जरूरी नहीं कि नए स्पीकर के चुनाव के बाद बहुमत परीक्षण हो।