भोपाल। मध्यप्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति पिछले 1 सप्ताह से अज्ञात स्थान पर हैं। वो ना तो खुद सार्वजनिक स्थान पर आ रहे हैं और ना ही मुलाकात के लिए अपना पता बता रहे हैं। यह जानकारी नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने दी। उन्होंने कहा कि वो पिछले 1 सप्ताह से विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति से बात करने की कोशिश कर रहे हैं।
मामला पवई से भाजपा विधायक रहे प्रहलाद लोधी की विधानसभा सदस्यता का है। पॉलिटिकल ड्रामा जारी है। हाईकोर्ट से सजा पर मिले स्टे के बाद भाजपा दावा कर रही है कि लोधी की सदस्यता बहाल होनी चाहिए, लेकिन करीब एक सप्ताह बीतने के बाद भी विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति की ओर से बहाली को लेकर कोई संकेत नहीं दिए गए।
नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव का कहना है कि वे सोमवार से लेकर मंगलवार दोपहर तक प्रजापति को कई फोन कर चुके हैं, लेकिन शाम को जाकर उनसे बात हुई। उनसे भोपाल में आने के बारे में पूछा गया और कहा गया कि लोधी की सदस्यता का मसला है तो विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि वे अभी भोपाल नहीं आ पाएंगे। नेता प्रतिपक्ष ने फिर कहा कि जहां आप हों, वहां आ जाते हैं। इस पर अध्यक्ष ने कहा, बताते हैं।
शिवराज सिंह का दावा: शीतकालीन सत्र में सदन में मौजूद रहेंगे लोधी
भाजपा का कहना है कि सदस्यता समाप्त करते समय तो 48 घंटे में ही विधानसभा अध्यक्ष ने कार्रवाई कर दी, लेकिन बहाली में जानबूझकर देरी कर रहे हैं। शिवराज सिंह ने दावा किया कि लोधी शीतकालीन सत्र में भाग लेंगे। विधानसभा अध्यक्ष को सदस्यता खत्म करने का अधिकार नहीं है। विधानसभा सचिवालय और अध्यक्ष का फैसला असंवैधानिक है।
कोर्ट ने सजा पर स्टे दिया है, सदस्यता पर नहीं: शर्मा
जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि कोर्ट ने लोधी की सजा पर स्टे दिया है, सदस्यता पर नहीं। विधानसभा अध्यक्ष ने नियमानुसार कार्यवाही की है। कोर्ट के मामले में राज्यपाल का दखल जरूरी नहीं। भाजपा राष्ट्रपति के पास जाए या राज्यपाल के पास। एक बात स्पष्ट है कि लोधी अब पूर्व विधायक हैं। लोधी ने अपराध किए हैं, इसलिए कोर्ट ने उन्हें सजा दी। अभी तो तीन-चार भाजपा विधायक और संपर्क में हैं।
अध्यक्ष ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला लिया : मिश्रा
पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला लिया है। विधानसभा सचिवालय ने कोई त्रुटि की है तो सुधारना चाहिए। लोकप्रहरी संस्था वर्सेज चुनाव आयोग कोर्ट पह़ुंचे थे, उसका निर्णय देख लें। फैसला लेने में मदद मिलेगी। राज्यपाल तो स्वाभाविक रूप से हस्तक्षेप करते ही हैं। चुनाव आयोग ने अभी तक स्थान रिक्त किया ही नहीं है।