जबलपुर। मध्य प्रदेश की नई रेत नीति के खिलाफ हाई कोर्ट में दाखिल याचिका की सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश शासन की ओर से जवाब दाखिल नहीं किया गया। सरकार ने इसके लिए और समय मांगा है। हाईकोर्ट ने कमलनाथ सरकार को 10 दिसंबर तक की मोहलत दी है। बता दें कि मध्य प्रदेश की नई रेत नीति में भेदभाव का आरोप लगाया गया है एवं अपील की गई है कि इसे निरस्त किया जाए।
मध्य प्रदेश की नई रेत नीति असंवैधानिक है: आरोप
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार मित्तल व जस्टिस विष्णुदेव प्रताप सिंह की युगलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे व रजत भार्गव की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि राज्य शासन की नई रेत नीति के कुछ बिन्दु असंवैधानिक होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य हैें। ऐसा इसलिए क्योंकि इनके जरिए भेदभाव को प्रश्रय दिया गया है। मसलन, नर्मदा में मशीन से रेत खनन प्रतिबंधित किया गया है, जबकि अन्य नदियों में नहीं।
मध्य प्रदेश की नई रेत नीति में भेदभाव किया गया है, निरस्त की जाए
इसी तरह स्टोरेज के बिन्दु पर जबलपुर, इंदौर, भोपाल व ग्वालियर में नियम लागू न होने व शेष में लागू होने जैसा भेदभाव भी परिलक्षित हुआ है। कायदे से रेत नीति ऐसी होनी चाहिए जो पूरे प्रदेश में समान तरीके से लागू हो लेकिन नई रेत नीति में भेदभाव की भरमार है। लिहाजा, ऐसी नीति को निरस्त कर दिया जाना चाहिए।
मध्यप्रदेश शासन ने जवाब पेश करने के लिए और समय मांगा
मध्य प्रदेश राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता शशांक शेखर खड़े हुए। उन्होंने कोर्ट को अवगत कराया कि इस संबंध में शीघ्र जवाब पेश कर दिया जाएगा। लिहाजा, मोहलत अपेक्षित है। बता दें कि इस मामले में हाईकोर्ट पहले भी नोटिस जारी कर चुका है लेकिन सरकार अपना पक्ष प्रस्तुत नहीं कर पा रही है।