दिग्विजय सिंह के आरोप झूठे थे, नर्मदा प्लांटेशन घोटाला हुआ ही नहीं: अपर मुख्य सचिव का अनुसंधान | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। जिस नर्मदा पौधारोपण घोटाले को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया। जिसके बारे में दिग्विजय सिंह ने नर्मदा पदयात्रा के बाद दावा और खुलासा किया। जिस घोटाले के खुलासे का डर दिखाकर कंप्यूटर बाबा मंत्री का दर्जा पा गए, वन विभाग के अपर मुख्य सचिव एपी श्रीवास्तव के अनुसार वह घोटाला हुआ ही नहीं था। वन मंत्री उमंग सिंघार ने सीएम शिवराज सिंह चौहान और तत्कालीन वन मंत्री डॉ गौरीशंकर शेजवार के खिलाफ EOW से जांच कराने का प्रस्ताव भेजा था परंतु अपर मुख्य सचिव श्रीवास्तव में उसे सिरे से खारिज कर दिया है।

शिवराज और शेजवार के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं: श्रीवास्तव

पत्रकार श्री मनोज तिवारी की एक रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग के अपर मुख्य सचिव एपी श्रीवास्तव ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व वनमंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार के खिलाफ ईओडब्ल्यू से जांच करवाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को भेजे प्रस्ताव में लिखा है कि दोनों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं, इसलिए उनके खिलाफ जांच की सिफारिश नहीं की जा सकती। 

अफसरों पर कार्यवाही नहीं, क्योंकि फैसला पॉलिटिकल था

पौधारोपण से जुड़े अफसरों पर भी कोई कार्रवाई नहीं होगी। इसके लिए तर्क दिया गया है कि पौधारोपण का निर्णय शीर्ष राजनीतिक फैसला था, जिसका पालन करना अफसरों की जिम्मेदारी है। ज्ञात हो, प्रदेश में दो जुलाई 2017 को विशेष अभियान चलाकर एक साथ सात करोड़ पौधे रोपने का दावा किया गया था।

नोट शीट पर मुख्यमंत्री या वन मंत्री के सिग्नेचर ही नहीं

सूत्रों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व वनमंत्री डॉ. गौरीशंकर शेजवार के खिलाफ जांच के मामले में फाइल में लिखा गया है कि पौधारोपण से जुड़ी नोटशीट पर पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व वनमंत्री के हस्ताक्षर नहीं हैं। चूंकि उनके द्वारा निर्णय लिए जाने के साक्ष्य नहीं हैं, इसलिए उनके खिलाफ जांच भी नहीं कराई जा सकती है। 

पौधारोपण घोटाले छुपाने के लिए नियम पहले से मौजूद है 

मध्य प्रदेश वन विभाग के नियम है कि तीन साल से पहले पौधारोपण मामले की जांच नहीं करा सकते, क्योंकि पौधों की जीवितता के लिए तय मानकों के मुताबिक जीवितता का सही आकलन तीन गर्मियां निकलने के बाद होता है। विभाग इन तीन सालों में कैजुअल्टी रिप्लेसमेंट (मृत पौधे हटाकर नए लगाने) पर काम करता है। यह सतत प्रक्रिया है। यानी कि यदि जांच कराना चाहे भी इसके लिए अभी 2 साल और रुकना होगा। इसके बाद भी जांच नहीं करा पाएंगे क्योंकि तीन साल बाद तय मानक से कम पौधे जिंदा मिलते हैं तो भी कारणों (अधिक गर्मी-बारिश के दिन, तापमान और तकनीकी रिपोर्ट) का विश्लेषण किया जाता है। इसके बाद ही निर्णय लिया जाता है।

एक दिनी प्लांटेशन पर आपत्ति भी खारिज

सूत्र बताते हैं कि अफसरों ने एक दिन में प्लांटेशन कराने की मंत्री सिंघार की आपत्ति को भी खारिज कर दिया है। अफसरों ने तर्क दिए हैं कि इससे पहले शहडोल में एक दिन में 15 लाख और अगले ही साल पूरे प्रदेश में सवा करोड़ पौधे रोपे गए थे। ऐसे ही विभाग ने गिनीज बुक्स ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स की आपत्ति को भी खारिज कर दिया। विभाग का कहना है कि उन्होंने सिर्फ 3.34 करोड़ पौधे रोपे हैं और रिकॉर्ड का काम वे नहीं देख रहे थे। ज्ञात हो कि रिकॉर्ड बनाने का जिम्मा मप्र राज्य योजना आयोग को सौंपा गया था।

बहुत जरूरी हुआ तो दो-चार रेंजर, एकाध एसडीओ सस्पेंड कर देंगे

नोटशीट में यह भी बात कही गई है कि मैदानी वन अफसरों से पौधारोपण मामले की इंटर सर्किल जांच करवाई जा रही है। इसमें पौधारोपण के लिए गड्ढों की खुदाई और पौधे लगाने में गड़बड़ी सामने आती है, तो संबंधित क्षेत्र के वनरक्षक से लेकर वनमंडलाधिकारी तक जिम्मेदारी तय होगी और फिर उन पर कार्रवाई की जाएगी।

वनमंत्री सिंघार ने जुलाई 2019 में इंटर सर्किल जांच के आदेश दिए थे, जो अब तक पूरी नहीं हुई है। इसके पीछे वन अफसरों का तर्क है कि इस साल ज्यादा और देर तक बारिश चली है, इसलिए जंगलों में घुसना मुमकिन नहीं था। यही कारण है कि जांच नहीं करवाई जा सकी। 

पौधारोपण मामले में जिस स्तर से निर्णय होना है। फाइल वहां भेज दी है। क्या लिखा है वह नहीं बताया जा सकता। - एपी श्रीवास्तव, अपर मुख्य सचिव, वन विभाग 

कुछ सुलगते सवाल 

सबसे बड़ा प्रश्न किया कि क्या दिग्विजय सिंह के सभी आरोप झूठे थे। 
क्या मध्यप्रदेश में नर्मदा प्लांटेशन घोटाला हुआ ही नहीं। 
घोटाला यदि हुआ है तो किसने किया। 
जब मुख्यमंत्री और वन मंत्री ने आदेश ही नहीं दिए तो प्लांटेशन कैसे हुआ। 
इतने बड़े पौधारोपण अभियान का आदेश किसने जारी किया। 
₹4 के पौधे ₹40 में खरीदे गए, क्या यह घोटाला नहीं। 
यदि घोटाला नहीं हुआ था कंप्यूटर बाबा को शिवराज सिंह ने मंत्री दर्जा क्यों दिया। 
कहीं यह शिवराज सिंह और अपने अफसरों को बचाने की साजिश तो नहीं। 

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