भोपाल। मध्यप्रदेश में ज्यादातर मामलों में सूचना के अधिकार के तहत पहले आवेदन पर जानकारी नहीं दी जाती। खासकर भ्रष्टाचार के मामलों में जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती। अधिकारियों को भरोसा होता है कि अपील करता राज्य सूचना आयोग तक पहुंच ही नहीं पाएगा। प्रदेश के किसी भी जिले से भोपाल आना, अपील के लिए आवेदन करना और यह सब कुछ सिर्फ इसलिए ताकि सरकारी खजाने में हो रहा भ्रष्टाचार रोका जा सके। कम से कम आदमी इतना कष्ट नहीं करता लेकिन अब लोगों को भोपाल तक आने की जरूरत ही नहीं है क्योंकि राज्य सूचना आयुक्त में पदस्थ एक इंफॉर्मेशन कमिश्नर राहुल सिंह सोशल मीडिया पर ही ना केवल मामले दर्ज कर रहे हैं बल्कि फोन पर सुनवाई करके फैसले भी सुना रहे हैं।
ट्विटर पर आई थी शिकायत, प्रकरण दर्ज कर लिया
सूचना का अधिकार कानून के तहत 30 दिन में जानकारी देने के प्रावधान हैं पर अक्सर अधिकारियों की लापरवाही के चलते कई मामले महीनों सालों तक लंबित हो जाते हैं। अपनी तरह के पहले मामले में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने ट्विटर पर मिली शिकायत पर ही प्रकरण पंजीबद्ध कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही कर दी है।
मामला क्या है
अपील करता मनोज कुमार दुबे ने प्रकरण में गोविंदगढ़ रीवा में जल संसाधन विभाग से जुड़ी हुई जानकारी मांगी थी। उनकी अपील को मुख्य अभियंता के कार्यालय ने कार्यपालन यंत्री के कार्यालय में ट्रांसफर कर दी थी। अपीलकर्ता मनोज कुमार दुबे जब भी कार्यालय जाते वहां उनको प्रकरण की कोई जानकारी नही दी जाती। बाद में मुश्किल से बाबू मिले तो बाबू ने जानकारी की प्रतिलिपि के लिए ₹2 का चालान एसबीआई बैंक चालान के माध्यम से जमा करने को कहा। अपीलकर्ता ने विरोध किया कहा कि नगद में पैसे जमा करवा लें, दो रुपये का बैंक से चालान बनाने वे कहा जाएगे। मनोज ने उस वक़्त अपने मोबाइल कैमरे से उक्त अधिकारी का वीडियो भी बना लिया जिसमें अधिकारी कह रहे हैं कि उनको आरटीआई के कानून से कुछ लेना-देना नहीं है। यह वीडियो और अपनी पूरी शिकायत उन्होंने ट्विटर के माध्यम से मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह टैग करते हुए पोस्ट कर दी।
सूचना आयुक्त राहुल सिंह छुट्टी पर थे पर उन्होंने चंद मिनटों में इसका संज्ञान लेते हुए अपने कार्यालय को इस मामले में प्रकरण पंजीबद्ध करने के निर्देश दे दिए। सूचना आयुक्त के निर्देश पर उनके कार्यालय ने तत्काल व्हाट्सएप के माध्यम से अपीलकर्ता से धारा 18 के तहत शिकायत का आवेदन भी प्राप्त किया। अपीलकर्ता ने अपनी शिकायत में बताया कि किस तरह से उनको सरकारी कार्यालय में जानकारी देने के नाम पर भटकाया जा रहा है।
सूचना आयुक्त ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की
सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने अपने ट्विटर हैंडल @rahulreports पर रीवा के अधिवक्ता मनोज कुमार दुबे से मिली शिकायत पर कड़ी कार्रवाई करते हुए मध्यप्रदेश के जल संसाधन विभाग के रीवा संभाग के मुख्य अभियंता एवं कार्यपालन यंत्री के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई एवं ₹7500- 7500 जुर्माने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। साथ ही विभाग के एक अन्य अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए प्रतिवेदन तलब किया है। मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग को अपीलकर्ता को ₹2000 का मुआवज़ा देने के आदेश भी सूचना आयुक्त ने जारी किए है।
सूचना आयुक्त राहुल सिंह के मुताबिक इस प्रकरण में एक नहीं बल्कि सूचना के अधिकार कानून की कई धाराओं का उल्लंघन हुआ है। 30 दिन की समय सीमा के उल्लंघन होने के बाद अपीलकर्ता चाहे तो प्रथम अपील में ना जाकर सीधे जुर्माने एवं अनुशासनिक कार्रवाई के लिए धारा 18 के तहत सूचना आयोग में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। धारा 18 के तहत जानकारी देने का प्रावधान नहीं है लेकिन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
सूचना आयुक्त ने इस शिकायत के अवलोकन के बाद अपने आदेश में कहा कि स्पष्ट तौर पर समय सीमा का उल्लंघन हुआ है जो की धारा 7 (1) का उल्लंघन है। वही मात्र एसबीआई का चालान मांग कर लोक सूचना अधिकारी कार्यालय कार्यपालन यंत्री ने धारा 7 (5) का उल्लंघन किया है। लोक सूचना अधिकारी को अपीलकर्ता की हर संभव मदद करनी चाहिए थी जो नहीं की गई यहां धारा 5 (3) का भी उल्लंघन हुआ है।
डीम्ड लोक सूचना अधिकारी कार्यपालन यंत्री ने धारा 5 (5) का उल्लंघन किया है क्योंकि उन्होंने जानकारी नहीं देकर लोक सूचना अधिकारी मुख्य अभियंता का असहयोग किया है।
लोक सूचना अधिकारी मुख्य अभियंता कार्यालय मात्र आरटीआई आवेदन को दूसरे कार्यालय में अंतरित करके अपने कर्तव्यों से इतिश्री नहीं कर सकते हैं जानकारी देने में उनकी भी जवाबदेही तय होती है।
पहले भी ईमेल, फोन और व्हाटसअप के माध्यम से किया अपील का निराकरण
एक और प्रकरण में रीवा के TP तिवारी ने 2016 में शासकीय जनता महाविद्यालय के प्राचार्य की जानकारी मांगी। 3 साल चप्पले घिसने के बाद भी जानकारी नही मिली थी। जब इस मामले की राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने भोपाल में सुनवाई की तो चौकाने वाली जानकारी सामने आई। सरकारी अधिकारियों ने तिवारी के हस्ताक्षर वाला एक नोट आयोग के सामने पेश किया जिसमे आवदेक ने खुद जानकारी की जरूरत नही होने से जानकारी लेने से मना कर दिया।
मामला फ़र्ज़ी हस्ताक्षर का था लिहाज़ा सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने रीवा के SP आबिद खान को जाँच सौप दी। साथ ही सूचना आयोग ने महाविधालय के प्राचार्य को 15 दिन में जानकारी देने को कहा।
आयोग के आदेश के बाद भी जब समय सीमा में जानकारी नही मिली तो आवेदक ने सीधे सूचना आयुक्त से फ़ोन पर सम्पर्क किया और ईमेल कर के अपनी शिकायत दर्ज़ कराई। सूचना आयुक्त ने भी इस मामले में तुरंत करवाई करते हुए अपील की सुनवाई फ़ोन पर कर डाली और फ़ोन पर हुई आदेश जारी करने की करवाई का वीडियो ट्विटर के माध्यम से सावर्जनिक कर दिया। साथ ही सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने रीवा के क्षेत्रीय संचालक उच्च शिक्षा विभाग सत्येन्द्र शर्मा को फ़ोन पर तत्काल आदेश जारी करने का निर्देश देते हुए आदेश का पालन प्रतिवेदन व्हाटसअप के माध्यम से भेजने को कहा। एक घंटे के अंदर आदेश की कॉपी व्हाटसअप पर आते ही उसे सूचना आयुक्त ने ट्विटर पर डाल कर सावर्जनिक भी कर दिया।
छात्र के मामले का निराकरण व्हाटसअप के माध्यम से
एक और मामले में रीवा के रामावतार नाम के एक छात्र ने अपनी मार्कशीट के लिए RTI की अर्जी लगाई। जानकारी नही मिलने पर उसने आयोग में अपील दायर की। सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने इस मामले में आदेश को व्हाटसअप के माध्यम से आवेदक को दिया और उसको प्रिंटआउट ले कर अधिकारियों से मिलने को कहा और साथ ही अधिकारियों को फोन पर जानकारी देने को कहा। 15 दिन में जब तक आयोग के आदेश की सरकारी डाक पहुँचती उससे पहले छात्र को उसकी मार्कशीट मिल गई थी।
अपने इस प्रयोग के बारे में देश के सबसे युवा सूचना आयुक्त राहुल सिंह का कहना है, " हम मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए उस पर करवाई करते है। कई मामलों में जानकारी मांगने वाला व्यक्ति वैसे ही बेहद परेशानी से गुजर रहा होता है। और अधिकारियों के रवैये से उनकी परेशानी बढ़ जाती है ऐसे में आयोग के इस तरह के फैसले लोगो को सूचना के अधिकार कानून के प्रति विश्वास पैदा करता है।"