भोपाल। मध्यप्रदेश परिवहन विभाग में कमिश्नर को बदल दिया गया परंतु स्मार्ट चिप कंपनी की अवैध वसूली लगातार जारी है। मजेदार बात तो यह है कि परिवहन मंत्री भी इस कंपनी की वसूली पर आपत्ति जता चुके हैं परंतु उसके बाद पता नहीं कंपनी प्रबंधन ने कौन सा मंत्र पढ़ा कि कंपनी की वसूली नहीं रुकी, मंत्रीजी की नाराजगी खत्म हो गई। बता दें कि परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट से आते हैं।
मध्यप्रदेश परिवहन विभाग कंप्यूटरीकरण का कार्य करने वाली प्राइवेट कंपनी स्मार्ट चिप लिमिटेड शुरू से ही काफी विवादों में रही है। 2002 से 2019 तक इस कंपनी पर कई बार भृष्टाचार के ओर अवैध वसूली ओर निम्न गुणवत्ता की सेवाएं प्रदान करने के आरोप लगे है लेकिन शासन और प्रशासन में अपने अच्छे संबंधों के चलते कंपनी पर कभी कोई कार्यवाही नही हुई।
वर्तमान में स्मार्टचिप लिमिटेड और परिवहन विभाग के मध्य हुआ अनुबंध की अवधि 5 वर्ष पूरी होने की वजह से समाप्त हो चुका है। प्रदेश की सरकार बदलने की वजह से अनुबंध का नवीनीकरण नही हुआ है। पूर्व परिवहन आयुक्त शैलेंद्र श्रीवास्तव से मधुर संबंधों की वजह से कंपनी 3-3 माह का एक्सटेंसन लेकर कार्य कर रही है। विभागीय सूत्र बताते है कि ये एक्सटेंशन परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत की मंशा के बगैर पूर्व परिवहन आयुक्त ने अपने स्तर पर कंपनी के साथ अपने संबंधों को निभाते हुए किया है। जिससे परिवहन मंत्री और परिवहन आयुक्त के बीच खटपट भी हुई थी उसी वजह से पूर्व परिवहन आयुक्त शैलेन्द्र श्रीवास्तव का सेवानिवृति के 9 माह पहले स्थानांतरण अन्य विभाग में किया गया। स्मार्टचिप चाहती है कि अनुबंध पुरानी दरों में कुछ प्रतिशत की वृद्धि कर जैसा का तैसा आगे 5 साल के लिए बड़ा दिया जाए लेकिन परिवहन मंत्री चाहते है कि नई निविदा जारी कर अन्य कंपनियों को भी मौका दिया जाए। फिलहाल इस मामले में सभी ने चुप्पी बरती हुई है अभी न कंपनी कुछ बोल रही है न मंत्री जी, न नए परिवहन आयुक्त।
इसी बीच नया मामला आया है अधिसूचना की अवधि समाप्त होने के बाद भी 4 माह से जनता से सीधे करोड़ो रुपये अवैध रूप से वसूलने का। मामला ज्यादा पेचीदा नही है आसानी से समझा जा सकता है। मध्यप्रदेश परिवहन विभाग ने 5 दिसम्बर 2013 को एक अधिसूचना क्रमांक 536 जारी की थी। जो परिवहन विभाग में मिल रही ऑनलाइन सेवाओँ से संबंधित थी। इस अधिसूचना के माध्यम से जनता को अवगत कराया गया था कि परिवहन विभाग ओर स्मार्टचिप कंपनी के मध्य ई गवर्नेंस लागू करने की दृष्टि से अनुबंध हुआ है जिसके तहत स्मार्टचिप कंपनी जनता को ऑनलाइन सेवाएं जैसे वेब आधारित ऑनलाइन आवेदन ओर ऑनलाइन टैक्स फीस पेमेंट सिस्टम प्रदान करेगी और इन सेवाओं के बदले जनता से सीधे सेवा शुल्क वसूल करेगी। सेवा शुल्क की दरें अधिसूचना के अनुसार वेब आधारित ऑनलाइन आवेदन की सेवा पर 36 ओर ऑनलाइन टैक्स फीस पेमेंट सिस्टम पर 27 रुपये प्रति ट्रांसेजेक्शन जनता से सीधे वसूले जाएंगे।
अधिसूचना में स्पष्ट लिखा था कि "उपरोक्त वर्णित दरें, इस अधिसूचना के प्रभावी होने की तारीख से पांच वर्ष अथवा अनुबंध समाप्ति, जो भी पहले हो, तक के लिए वैध रहेंगी"।
यह अधिसूचना 1 जुलाई 2014 को प्रभावी हुई थी और 30 जून2019 को इसे 5 वर्ष पूरे हो गए। इसके उपरांत भी स्मार्टचिप द्वारा उक्त सेवा शुल्क जनता से वसूल जा रहा है। जबकि इस वसूली को आगे बढ़ाने के संबंध मैं परिवहन विभाग द्वारा कोई नई अधिसूचना जारी नही की है न कोई प्रेस नोट जारी किया। इसलिए उक्त सेवाओँ पर स्मार्ट चिप कंपनी द्वारा सेवा शुल्क की वसूली पूरी तरह अवैध हो गयी। क्योंकि उक्त सेवाएं परिवहन विभाग की सरकारी वेबसाइट द्वारा प्रदान की जारी है स्मार्टचिप कि वेबसाइट द्वारा नही। फिर स्मार्ट चिप कैसे वसूली कर रही है और मप्र परिवहन विभाग अपनी वेबसाइट पर स्मार्टचिप को कैसे वसूली करने दे रहा है ये जांच का विषय है। क्योंकि इन 4 माह में उक्त कंपनी की जनता से अनुमानित अवैध वसूली करोड़ो रूपये में है।
शिवपुरी के आरटीआई कार्यकर्ता विजय शर्मा ने स्मार्टचिप पर 30 जून 19 के बाद से अभी तक करोड़ो रूपये गैरकानूनी तरीके से जनता से वसूलने का आरोप लगाया है। विजय शर्मा का कहना है कि यह वसूली पूरी तरह अवैध है इसके पूरे तथ्य और सबूत उनके पास है। इसके सम्बंध कई कानूनी जानकारों से बात की है। सबका यही कहना है कि ये वसूली पूरी तरह से अवैध है। यदि इस वसूली को तय अवधि से आगे बढ़ाना था तो इसके लिए नई अधिसूचना जारी करनी थी जो नही हुई है। mpgovtpress.gov.इन की वेबसाइट से इस बात की पुष्टि हो रही है क्योंकि अगर नई अधिसूचना जारी होती तो इस वेबसाइट पर मिल जाती। यह सारी जानकारी वो ट्विटर के माध्यम से परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत दे चुके है। यदि इस कंपनी पर कोई कार्यवाही नही हुई और जनता से अवैध तरीके से वसूले गए पैसे जनता को वापिस नही दिलाये तो वह उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कंपनी पर कार्यवाही कराएंगे।