भोपाल। भोपाल समाचार की खबर का एक बार फिर असर हुआ है। मध्य प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग को अयोग्य शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी। फिलहाल ऐसे 16 आयोग के शिक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई है जो दक्षता परीक्षा में 33% नंबर भी नहीं ला पाए थे। हालांकि सोशल मीडिया पर आम जनता ऐसे आयोग के शिक्षकों की सेवा समाप्ति की मांग कर रही थी। अब उन शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही शेष है जिनके नंबर 50% से कम आए थे।
मामला क्या है
मध्य प्रदेश में हाई स्कूल परीक्षा परिणाम बिगड़ने के बाद स्कूल शिक्षा विभाग में कैसे 3500 शिक्षकों की दक्षता परीक्षा का आयोजन किया था जिनके सर्वाधिक स्टूडेंट्स हाईस्कूल परीक्षा में फेल हुए। उद्देश्य था यह पता लगाना कि शिक्षक अपने कर्तव्य में दक्ष है या नहीं। तय किया गया था कि दक्षता परीक्षा में 50% से कम अंक लाने वालों को शासकीय सेवा से बाहर कर दिया जाएगा। शिक्षा मंत्री डॉक्टर प्रभु राम चौधरी ने इसका ऐलान किया था।
फिर शुरू हुआ शिक्षकों की नौकरी बचाने का खेल
शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जब पता चला कि चिन्हित किए गए 3500 में से ज्यादातर शिक्षक सचमुच अयोग्य हैं तो दक्षता परीक्षा के नियम बदलना शुरू हुए। सबसे पहले खुली किताब से नकल करने का अवसर दिया गया। इसके बावजूद आधे शिक्षक 50% अंक नहीं ला पाए। करीब 12 सौ से ज्यादा शिक्षकों की नौकरी खतरे में थी। पॉलीटिकल प्रेशर भी था। अधिकारियों ने फिर नियम बदला और दूसरी बार दक्षता परीक्षा का आयोजन किया गया। इस में फेल हुए शिक्षकों को दूसरी बार खुली किताब से नकल करने का मौका दिया गया। दूसरी बार की परीक्षा में प्रश्न पत्र भी काफी सरल बनाया गया। बावजूद इसके 80 शिक्षक 50% अंक नहीं ला पाए।
64 अयोग्य शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही शेष है
दूसरी बार आयोजित हुई सरल दक्षता परीक्षा में फेल हुए 80 में से उन 16 शिक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई जिनके प्राप्तांक 33% से कम थे लेकिन 64 शिक्षक अभी विशेष है जिनके प्राप्तांक निर्धारित 50% से कम है। शिक्षा विभाग की एक हाई लेवल कमेटी ने परीक्षा परिणाम बन जाने के बाद नियमों में परिवर्तन किया लेकिन यह परिवर्तन अवैध है। परीक्षा परिणाम तैयार हो जाने के बाद परीक्षा की नियम व शब्दों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
मीडिया के दबाव में हुई कार्रवाई
इस मामले को भोपाल समाचार सहित मध्य प्रदेश के कुछ प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने लगातार उठाया। जब खबरों का सिलसिला बंद नहीं हुआ तो अंततः शिक्षा विभाग के अधिकारियों को कार्यवाही करनी पड़ी। 16 शिक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी गई। अब देखना यह है कि शेष 64 अयोग्य शिक्षकों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है। इन शिक्षकों को कम से कम अध्यापन कार्य के लिए तो नियुक्त नहीं किया जा सकता यह बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा। अधिकारी चाहे तो इन सभी 64 शिक्षकों का डिमोशन कर उन्हें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनाया जा सकता है।