भोपाल। मप्र में 16 शिक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देकर शासन-प्रशासन अपनी पीठ थपथपा रहा है, कारण ये परीक्षा उत्तीर्ण न कर पाये। मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ के प्रांतीय उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने कहा कि 16 शिक्षकों की अनिवार्य सेवानिवृत्ति न्यायोचित नहीं है।
पंगु शिक्षा नीति, बगैर रोके कक्षोन्नति, भयमुक्त शिक्षा को लागू करते भयभीत शिक्षक, विद्यालयीन समय में प्रशिक्षण के नाम पर बच्चों को पढ़ाने न देना, बिगड़ा शिक्षक छात्र अनुपात, शिक्षकों की कमी व नई नियुक्तियों को वर्षों से टालना, माननीय न्यायालय एवं विभागीय आदेशों के बाद भी गैर शैक्षणिक कार्य बदस्तूर जारी रखना, छात्रवृत्ति, सायकिल वितरण, ग्राम/नगर शिक्षा रजिस्टर सर्वे, एमडीएम, बोझिल पाठ्यक्रम ऐसे अनेकानेक कारण "राज्य शिक्षा केंद्र" की स्थापना के साथ बेहतर शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने का मुख्य कारण है। प्रहार यहाँ होना था, आम शिक्षक चिंतन करता है कि पूर्व में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था को नीति नियंताओं ने चौपट किया है, इसमें शिक्षक कहाँ दोषी हैं ? इन शिक्षकों ने वर्षों तक अपनी सेवाएं दी हैं।
इनकी नियुक्ति से लेकर सेवानिवृत्ति दिनांक तक के सेवाकाल का परीक्षण किया जावे। यदि शिक्षक अयोग्य हैं तो इनके नियोक्ता से लेकर अभी तक वे विभागीय अधिकारी सबसे पहले दोषी हैं, जिनके अधिन ये कार्यरत रहे, प्रशिक्षक व प्रशिक्षण व्यवस्था में कार्यरत संपूर्ण अमला, उनके साथ समस्त विभागीय/गैर विभागीय निरीक्षणकर्ताओं व गैर शैक्षणिक कार्य में संलग्न करने वाले राजस्व अधिकारियों "तहसीलदार/एसडीएम /कलेक्टर को जो सबसे पहले सेवा में है तो सेवानिवृत्ति देकर व सेवानिवृत हो चुके तो उनकी चल-अचल संपत्ति से प्रभावित शिक्षकों के वेतन भत्तों की भरपाई भी इनसे करना न्यायोचित होगा। शिक्षकों की अनिवार्य सेवानिवृत्ति से सफेद हाथी व बड़ी मछलियां अपने आप को बचाने का कुत्सित प्रयास कर कामयाब रहे ; जिसे किसी भी हालत में अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
"मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ" मुख्यमंत्री माननीय श्रीमान कमलनाथ जी व शिक्षा मंत्री माननीय श्रीमान प्रभुराम चौधरी व जनसंपर्क मंत्री माननीय श्रीमान पीसी शर्मा जी मप्र शासन भोपाल से मांग करता है कि प्रभावित शिक्षकों के मामले में संवेदनशील होकर बहाल कर शिक्षा विभाग के अंदर पढ़ाने के अलावा अनावश्यक डाक व गैर जरूरी प्रशिक्षण से मुक्त रखकर संपूर्ण सत्र केवल पढ़ाई-लिखाई का कार्य करने दें; निश्चित तौर से शिक्षा के स्तर में चमत्कारी बदलाव देखने को मिलेगा। शिक्षकों को षड़यंत्र के तहत पढ़ाने नहीं देते व बेहतर परिणाम की आशा बेमानी होगी। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए मैदानी अमले के सुझाव लेकर सख्ती से पालन हो, वांछित परिणाम मिलना तय है। सरकार पर रोजगार देने के बजाय रोजगार छीनने का ठप्पा लगने से लाखों कर्मचारियों की भावनाएं आहत तो हुई है साथ ही गहरी नाराजगी व आक्रोश व्याप्त हैं । इतिहास गवाह है कर्मचारियों की बेरुखी कभी भी सत्ताधारी दल के लिए राजनीतिक रूप से शुभ नहीं रही है । प्रकरण पर पुनर्विचार किया जाकर प्रभावित शिक्षकों को बहाल करना ही चाहिए।