भोपाल। मध्यप्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग में पिछले 18 सालों से एक घोटाला चल रहा था। घोटाले का खुलासा हुआ, जांच में घोटाला होना पाया गया लेकिन किसी भी जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। मामला सरकारी कॉलेजों से पढ़कर डॉक्टर बने लोगों की बांड रकम का है। यह कुल कितने करोड़ है अभी पता नहीं चल पाया है। विभाग इसका सही आकलन करने में लगा हुआ है।
डॉक्टर से तलाक लेकर अलग हुई महिला ने किया खुलासा
मध्य प्रदेश में पिछले 18 साल से यह घोटाला सफलतापूर्वक चल रहा था। यह आगे भी चलता रहता लेकिन एक डॉक्टर का अपनी पत्नी से विवाद हो गया। विवाद के बाद मामला तलाक तक पहुंचा और तलाक भी हो गया। तलाक के बाद पत्नी ने सरकार को बताया कि उसके पति ने सरकारी कॉलेज से पढ़कर डॉक्टर की डिग्री हासिल की है। नियमानुसार उसे ग्रामीण क्षेत्र में सेवाएं देनी थी अन्यथा की स्थिति में बांड की रकम जमा करानी थी। उसने एक भी दिन ग्रामीण क्षेत्र में सेवाएं नहीं दी और ना ही बांड की रकम जमा कराई। मामला घोटालेबाजों की पहुंच से बाहर निकला तो जांच शुरू हो गई। पाया गया कि करीब 4000 डॉक्टरों ने ऐसा ही किया है।
नियम बना था तो पालन क्यों नहीं हुआ
मध्य प्रदेश चिकित्सा शिक्षा विभाग के निर्धारित नियमों के अनुसार सरकारी या प्राइवेट कॉलेजों से डॉक्टर की डिग्री हासिल करने वाले लोगों को कम से कम 1 साल अनिवार्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र में सेवा करनी होती है। यदि वह ऐसा नहीं करते तो उन्हें एक निर्धारित बांड की रकम जमा करानी होती है। डिग्री धारी डॉक्टरों को प्रैक्टिस की अनुमति तो मिल जाती है लेकिन उनके मूल सरकारी दस्तावेज सरकार के पास जमा रहते हैं। सवाल यह है कि जब नियम बना था तो पालन क्यों नहीं किया गया। जो अधिकारी इस घोटाले में शामिल है उनके खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गई।
कैसे हुआ चिकित्सा शिक्षा बॉन्ड घोटाला
नियमानुसार डॉक्टरों के मूल दस्तावेज सरकार के पास जमा होने थे। नियम का पालन हुआ और दस्तावेज जमा कराए गए लेकिन फिर इस घोटाले के लिए एक नया नियम बनाया गया। डॉक्टरों को छूट दी गई कि यदि कोई और कोर्स करना चाहते हैं तो उन्हें उनके मूल दस्तावेज वापस कर दिए जाएं और शपथ पत्र लिया जाए कि नया कोर्स पूरा होते ही वह ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देंगे। इसी नियम का फायदा उठाया गया। करीब 4000 डॉक्टरों ने नया कोर्स करने के बहाने मूल दस्तावेज वापस ले लिए और फिर ना तो सेवाएं नहीं नाही बॉन्ड की रकम जमा कराई।
बिना मिलीभगत के घोटाला संभव ही नहीं
घोटाले का खुलासा होने के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सभी डॉक्टरों को नोटिस जारी कर बांड की रकम जमा कराने के लिए कहा है। 4000 में से मात्र 204 डॉक्टरों ने बॉन्ड की रकम जमा कराई है। यहां ध्यान देने वाली बातें आएगी बिना विभागीय मिलीभगत के यह घोटाला हो ही नहीं सकता था।
जब डॉक्टर ने कहा कि उसे नई कोर्स के लिए मूल दस्तावेज चाहिए तो क्या यह सत्यापित कर दिया गया था कि उसने किसी नए कोर्स के लिए अप्लाई किया है।
डॉक्टर जिस संस्थान से नया कोर्स कर रहा था क्या विभाग की तरफ से उस संस्थान को यह बताया गया कि संबंधित डॉक्टर को मूल दस्तावेज ना लौटए जाए बल्कि सरकार के पास जमा करा दिए जाएं।
क्या चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मूल दस्तावेज लेकर जाने वाले डॉक्टरों का कोर्स की अवधि के बाद सत्यापन किया कि वह ग्रामीण क्षेत्र में सेवाएं दे रहे हैं या नहीं।
सिर्फ बांड की रकम क्यों जमा करा रहा है विभाग, सजा क्यों नहीं
करीब 4000 डॉक्टरों ने सरकार के साथ धोखाधड़ी की है। आईपीसी की धारा 420 के तहत या दंडनीय अपराध है। एक आपराधिक षड्यंत्र रचा गया और अपराध किया गया। आईपीसी की धारा 120 बी के तहत यह दंडनीय अपराध है। बावजूद इसके सरकार केवल बांड की रकम जमा करा रही है। सन 2002 में यह रकम मात्र ₹40000 थी। सवाल यह है कि सरकार करीब 4000 घोटालेबाज डॉक्टरों के प्रति नरम रुख क्यों अपना रही है।