इंदौर। जिला लोक अभियेाजन अधिकारी मो. अकरम शेख द्वारा बताया कि, विशेष न्यायालय श्री विकास शर्मा इंदौर के द्वारा थाना विशेष पुलिस स्थापना इंदौर के अप.क्र. 20/95, फौजदारी प्रकरण क्र. 25/04, में आरोपीगण (1) बालकदास तिवारी तत्कालीन अधीक्षण यंत्री नर्मदा विकास मंडल क्र.10 (2) मोहनलाल जोशी अधीक्षक यंत्री नर्मदा विकास मंडल (3) वर्धमान कुमार तलेसरा तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी मान परियोजन संसाधन विभाग कुक्षी उप संभाग-1 सभी अधिकारी आरोपियों को भ्रष्टाचार निवारण अधि. की धारा 13 1(डी) के अपराध में धारा 13 (2) के तहत 4-4 वर्ष का सश्रम कारावास व 1-1 लाख रूपये के अर्थदंड से दंडित किया गया।
अर्थदंड के व्यतिक्रम में 1-1 वर्ष का अतिरिक्त कारावास पृथक से भुगताने का आदेश दिया गया और कंपनी के ठेकेदार आरोपियों को जिनमें (4) पी.पी. पोलिस, (5) पी.पी. थामस, (6) कुरियन पी पॉल को भी दोषी पाते हुए, धारा 406, 420, 120-बी भादवि के अपराध में 4-4 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 5-5 हजार के अर्थदंड से दंडित किया गया। उक्त प्रकरण में पैरवी विशेष लोक अभियोजक श्रीमती ज्योति गुप्ता द्वारा प्रकरण में लिखित तर्क एवं नवीन न्याय दृष्टांत प्रस्तुत किया जाकर दंड के प्रश्न पर आरोपियों को कठोर दंड के कारावास से दंडित किये जाने का निवेदन किया गया था।
अभियोजन की संक्षिप्त कहानी इस प्रकार है कि दिनांक़ 25.08.90 को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अंतर्गत ओवर फ्लो मेशनरी डेल का ठेका मेर्सस पल्लनती कन्सट्रक्शन कंपनी केरला को दिया गया था। और उसी के साथ ठेकेदार को वर्क ऑर्डर के साथ निर्देश था कि उसे यह कार्य 29 माह में पूर्ण करना हैं। जिसमें उसे मशीनरी हेतु अग्रिम भुगतान 1 करोड 10 लाख किया गया था। किंतु 29 माह की अवधि पूर्ण होने के बाद भी ठेकेदार के द्वारा लगभग 13 प्रतिशत ही कार्य किया गया एवं उसे दी गई मशीनरी का उपयोग उसके द्वारा अन्यत्र कार्यस्थल पर किया गया।
2 बार अधिकारियों के द्वारा ठेके की समायावधि बगैर पैनाल्टी लगाये ठेकेदार की मिलीभगत से बढाई गई किंतु फिर भी ठेका अनुबंध पूर्ण नही हुआ। अधिकारियों के द्वारा भी अपने पद का दुरूपयोग किया गया। इस संबंध मे प्रथम सूचना रिपोर्ट सन 1995 में तत्कालीन अधिकारियों की जांच रिपोर्ट के पश्चात आरोपीगण के विरूद्ध धारा 406, 420, 120-बी भादवि एवं धारा 13 1(डी) और 13 (2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत दर्ज करवाई गई एवं अनुसंधान उपरांत सन 2004 में माननीय न्यायालय के समक्ष अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया।