नागरिकता विधेयक और अमेरिकी संस्था का बेसुरा राग | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भारत में विधेयक के पक्ष विपक्ष में जो तर्क दिए गये , जग जाहिर हैं| लोकसभा में ३११ मतों से पारित इस विधेयक को राज्य सभा में प्रस्तुत होना है |  प्रतिपक्ष के विरोध के साथ असम में इस विधेयक को लेकर आन्दोलन जारी है | देश में इसबिल के पक्ष विपक्ष में तर्क- वितर्क आन्दोलन सब जायज है, लेकिन इसे लेकर विदेश में एक विशेष राय बनना और बनाना उचित नहीं है | यह सर्व ज्ञात तथ्य है कि भारत में राज्य सभा से पारित होने और राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कोई कानून अमल में आता है |

ऐसे में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संघीय अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) की उस टिप्पणीनुमा धमकी का क्या अर्थ है जिसमें आयोग ने कहा है कि नागरिकता संशोधन विधेयक ‘गलत दिशा में बढ़ाया गया एक खतरनाक कदम' है और यदि यह भारत की संसद में पारित होता है तो भारत के गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।  यूएससीआईआरएफ के इस बयान में कहा कि विधेयक के लोकसभा में पारित होने से वह बेहद चिंतित है| उल्लेखनीय है  लोकसभा ने सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) को मंजूरी दे दी, जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण ३१  दिसंबर २०१४  तक भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का पात्र बनाने का प्रावधान है|

इस अमेरिकी आयोग की यह टिप्पणी भी विचारणीय है कि, ‘अगर कैब दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो अमेरिकी सरकार को गृह मंत्री अमित शाह और मुख्य नेतृत्व के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए अमित शाह द्वारा पेश किए गए धार्मिक मानदंड वाले इस विधेयक के लोकसभा में पारित होने से यूएससीआईआरएफ बेहद चिंतित है|  वैसे तो भारत के मामलों में भारत की संसद, राजनीतिक दल चिंता करें तो ठीक, अमेरिकी आयोग का इसमें कूदना और भारत के गृह मंत्री के लिए सजा की सिफारिश करना क्या किसी संप्रभु राज्य के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप नहीं है |

नागरिकता संशोधन विधेयक को अब राज्यसभा में पेश किया जाएगा|  गृह मंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर संसद में कहा था कि यह भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है तथा २०१४  और २०१९ के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले जनमत का यह भी एक कारण रहा है |  अब ऐसे यूएससीआईआरएफ की टिप्पणी अवांछित ही कही जाएगी |एक विदेशी सन्गठन का यह आरोप लगाना कि कैब आप्रवासियों के लिए नागरिकता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है हालांकि इसमें मुस्लिम समुदाय का जिक्र नहीं है, उचित नहीं है | नागरिकता के लिए धर्म के आधार पर कानूनी मानदंड निर्धारण अनेक इस्लामिक देश भी करते रहे  हैं, अब तक कितनो पर कार्यवाही हुई यह भी एक सवाल है |  इस्लामिक देश तो नौकरी के आवेदन को भी धर्म के आधार पर जोड़ते है, इन देशों में गैर मजहब के लोगों को नौकरी नहीं मिलती  या मिलती है तो दर्जा निचला होता है |  विदेशी संस्थानों को इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि भारत के पडौसी देशों में अल्प संख्यकों की दशा क्या है ?वहां अल्प संख्यकों की घटती जनसंख्या और परिस्थिति उन्हें समुचित मानवीय अधिकारों से वंचित कर रही है,ऐसे बे यदि भारत वहां के अल्पसंख्यक वर्ग को शरण देकर नागरिकता देता है तो क्या गलत है ?

अमेरिकी आयोग ने यह भी कहा कि भारत सरकार करीब एक दशक से अधिक समय से यूएससीआईआरएफ के वक्तव्यों और वार्षिक रिपोर्टों को नजरअंदाज कर रही है| उसके इस आरोप को इस दृष्टि से देखना चाहिए कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) शासन के दिनों से ही भारत लगातार कहता आ रहा है कि वह अपने आतंरिक मामलों में किसी तीसरे देश के विचारों या रिपोर्ट को मान्यता नहीं देता है| तो अब इस मुद्दे का क्या औचित्य है |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करें) या फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!