जे एन यू : हंगामा मत कीजिये, जरा सोचिये | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। देश में उत्कृष्ट शिक्षा हो यह कौन नहीं चाहेगा ? जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी और उत्कृष्टता दोनों एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। इन दिनों यूनिवर्सिटी जिस दौर से गुजर रही है, उसमें उत्कृष्टता तो कोसों दूर जा रही है। गुरु शिष्य परम्परा के धनी देश की इस यूनिवर्सिटी में गुरु शिष्य के मध्य काम करने वाला प्रेम और सम्मान का सेतु नष्ट होता जा रहा है। शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए बनाया गया संस्थान अब खुद देश में शिक्षा प्रसार को किसी और दिशा में ले जाता दिख रहा है। देश में उत्कृष्ट यूनिवर्सिटी की वैसे भी कमी है। 

मध्यप्रदेश का ही उदहारण देखिये। प्रदेश में 17 सरकारी और 36 निजी यूनिवर्सिटियां है। इनमे से किसी एक का या सबको मिला भी लें तो सबका का कद जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी के मुकाबले नहीं है। फिर भी इन सबमें स्नातक, स्नातकोतर, शोध जैसे सारे पाठ्यक्रम चलते हैं। कमोबेश यही हाल दूसरे प्रदेशों के भी हैं। इनमे से अनेक सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में फीस जे एन यू से कई गुना ज्यादा है? सवाल यह है कि शिक्षा का समान अवसर देश में उपलब्ध क्यों नहीं है और इस अवसर में अडंगे कौन मारता है?

जेएनयू मुक्त विचारधारा के लिए जाना जाता रहा है। मुक्त विचारधारा के लिए ही यूनिवर्सिटी जैसी संरचना की कल्पना की जाती है। लेकिन जे एन यू में सत्ता के खिलाफ सवाल उठाने की परिपाटी रही है। वाम नेता सीताराम येचुरी जेएनयू में पढ़ते थे तब उन्होंने इंदिरा गांधी का कैंपस में विरोध किया था। मनमोहन सिंह के जेएनयू कैंपस में आने के खिलाफ भी प्रदर्शन हुआ था। 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद भी यह परिपाटी जारी रही। अब एक नई ऐसी बयार बह रही हैं, जो डिग्री के पहले “देश भक्त” और “देशद्रोही” के तमगे बाँट रही है। जेएनयू के छात्र-छात्राओं पर टीवी चैनलों ने ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ होने का विशेषण तक लगा दिया है।

2016 जेएनयू के 11 अध्यापकों ने “जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय: दि डेन ऑफ सेसेशनिसम एंड टेरोरिज़म” नाम से दौ सौ पृष्ठों का एक दस्तावेज तैयार किया। जिसमें कथित तौर पर बताया गया था कि कैसे जेएनयू में सेक्स और ड्रग्स की भरमार है| देश की एक प्रतिष्ठित पत्रिका में एक प्रोफेसर ने यहाँ तक कहा कि जेएनयू के मेस में सेक्स वर्कर्स का आना सामान्य बात है। वो यहां की लड़कियों और लड़कों को भी फंसा लेती हैं| ऐसी रिपोर्ट उन सारी कल्पनाओं मुहरलगा देती है जिसे बदनामी कहा जाता है। कुछ छात्र छात्राओं की तमाम तरह की फोटोशॉप्ड तस्वीरें वायरल हुई जो यह सिद्ध करते थे कि यहां पर सारे नैतिक मूल्य ताक पर रखे जा सकते हैं? फ्री स्पीच, युवा लड़के-लड़कियों के जीने का तरीका, उनके चुनाव सबको दरकिनार कर मध्ययुगीन पितृसत्तात्मक तरीके से उन पर दृष्टिपात ने तो पूरे वातावरण को ही बदल दिया। रही सही कसर वॉट्सऐप ने पूरी कर दी। 

अब सवाल फिर वही हैं कि शिक्षा का समान अवसर देश में उपलब्ध क्यों नहीं है और इस अवसर में अडंगे कौन मारता है ? एक छात्र राम नागा ने “हम सब” को बताया कि वो उड़ीसा में स्नातक होने तक जे एन यू का नाम तक नहीं जनता था। देश में शिक्षा के नाम पर राजनेताओं ने जो बाज़ार खड़ा कर दिया है वो प्रतिभा को जे एन यू नहीं जाने देता कई सारे बच्चों को यह भी पता नहीं है जे एन यू कहाँ और कैसा है ? शिक्षा पर सबका हक है देश के कुछ चुनिदा लोगो, प्रान्तों, विचारधाराओं का नहीं। जब इलाज के लिए एम्स हर राजधानी में खोले जा सकते हैं, जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी की शाखाएं पूरे देश में क्यों नही ? हंगामा मत कीजिये, शांति से सोचिये समान शिक्षा के अवसर सबको क्यों नहीं?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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